जहां श्रम वहां संपत्ति पर कहानी लिखें
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दिव्यपुर राज्य में एक बहुत ही अच्छा राजा राज करता था. वह अपनी प्रजा को अपनी संतान की तरह चाहता था. वह अमीर – गरीब में कोई भेद नहीं करता था. वह सबकी शिकायतों को ध्यान से सुनता था.
एक बार राज्य का एक लकडहारा ने राजा से शिकायत की :- “महाराज! आप कहते हैं कि आप सब मनुष्यों से समान रूप से व्यवहार करते हो. मैं दिन भर कठिन परिश्रम करके एक दो रूपये मजदूरी पाता हूँ जबकि आपका एक राज कर्मचारी न कोई खास काम करता है, दिन भर धूप सेंकता है फिर भी वह 5000 रूपये पाता है. हममें इतना अंतर क्यों?”
तभी राजा ने देखा कि सामने एक गाड़ी जा रही थी. राजा ने उस लकडहारे से कहा :- जाओ और उस गाड़ीवाले से पूरी सुचना लेकर आओ.
लकडहारा खुश हो गया. मन ही मन सोचा भला यह भी कोई काम है. उस गाड़ीवाले से पूछ कर आया और राजा को आकर बताया – महाराज उस गाड़ी में चावल जा रहा है. राजा ने कहा सो तो ठीक है लेकिन वह जा कहाँ रहा है. लकडहारा फिर पूछने गया और पूछकर आया और बताया – महाराज वह अगले शहर को जा रहा है.
राजा ने पूछा – और चावल लेकर आ कहाँ से रहा है. लकडहारा बोला – अभी पूछकर आता हूँ. इस तरह से 10 बार में लकडहारा 10 बात पूछकर आया और भागता रहा.
अब राजा ने अपने एक राज कर्मचारी को बुलाया और कहा :- अभी यहाँ से चावल से लदी एक गाडी गई है. जाइए और उसके बारे में सूचना लेकर आइए.
उस कर्मचारी ने राजा से कहा – जी महाराज कुछ देर पहले मैंने उस गाड़ी को जाते देखा था. मैंने पूरी जानकारी ले ली थी. वह पिछले नगर से आयी थी और अगले नगर को जा रही थी. वह 2 रूपये किलो वाली बासमती चावल थी. कुल 32 बोरी थी. मालिक का नाम शेखरन था. वह 40 वर्ष का था. उसने राज कर का भुगतान भी कर दिया था.
लकडहारा उस कर्मचारी की बातें सुन हैरान था.
राजा ने लकडहारे की तरफ देखा. वह चुपचाप राजा को देखे जा रहा था.
" जहां श्रम वहां संपत्ति " उस विषय से संबंधित कहानी निम्न प्रकार से लिखी गई है।
रामपुर गांव में एक किसान रहता था। वह बहुत ही परिश्रमी था। उसके तीन बेटे थे। वह सुखी जीवन निर्वाह कर रहा था।
जब बेटे बड़े हुए तो उसे लगा कि वे उसके काम में हाथ बटाएंगे, अधिक मेहनत करेंगे , अधिक फसल उगेगी व बेटों का विवाह करवाऊंगा।
उसे जीवन में यही दुख था , उसके तीनों बेटे बड़े आलसी थे। कोई काम नहीं करते थे। जीवन में अकेले काम करते करते वह थक गया था। एक बार अचानक वह बीमार पड़ गया तथा उसने बिस्तर पकड़ लिया, अब उसके खेतों की देखभाल करने के लिए कोई नहीं था।
उसने एक दिन अपने तीनों बेटों को बुलाया व बताया कि हमारे खेतों में खजाना है, मेरी मृत्यु के बाद आप तीनों उसे खेत खोदकर निकालना व आपस में बांट लेना।
किसान एक मृत्यु के बाद उसके तीनो बेटे खेत की खुदाई में जुट गए, जब खेत खोदा तो उन्हें कुछ न मिला, उनके पड़ोसी किसान ने कहा कि अब जब खेत खोद लिए है तो बीज बो लो। तीनो ने ऐसा ही किया, इस प्रकार करते करते उनके खेतों में फसल तैयार हो गई। लहलहाते खेत देखकर तीनों बेटे बहुत खुश हो गए। उनके पड़ोसी किसान ने कहा कि तुम्हारे पिताजी इसी खजाने की बात कर रहे थे । हम किसानों के खेत व ये फसलें यही हमारा खजाना है।
अब बेटों की समझ में आ गया की उनके पिताजी क्या कहना चाहते थे।
फसल बेचकर उन्हें बहुत धन प्राप्त हुआ जिसे तीनो ने बांट लिया । भविष्य में भी तीनों ने मिलकर काम करने का फैसला किया।
शीर्षक : उस कहानी का उचित शीर्षक होगा , " श्रम ही धन है। "
सीख : इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि हमें कभी भी आलस नहीं करना चाहिए तथा श्रम ही संपत्ति होती है।
#SPJ2
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