jail mein band nirdosh kadi ki atmakatha (essay)
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जेल में बंद एक निर्दोष कैदी की आत्मकथा
नमस्ते! मेरा नाम सुबोध कुमार है। मैं पिछले 6 महीनों से तिहाड़ जेल में बंद हूं। मैं उस अपराध की सजा भुगत रहा हूं। जो मैंने किया नहीं। अभी मुझ पर ट्रायल चल रहा है, और मुझे आशा नहीं लगती जिस तरह मुझे फंसाया गया उससे मुझे न्याय मिलेगा।
बात उन दिनों की है, मेरा अपने मित्र से बहुत अच्छा दोस्ताना था। एक दिन में अपने मित्र से मिलने उसके घर गया तो किसी बात पर भी उससे थोड़ी कहासुनी हो गई। बस वह मेरा मित्र जोर-जोर से चिल्लाने लगा। जिससे आसपास के लोग जमा हो गए। फिर मैं चला आया। अगले दिन मुझे अपनी गलती का एहसास हुआ। तो मैं उससे माफी मांगने को उसके घर गया तो देखा मेरा वह मित्र बुरी तरह घायल पड़ा था। मैं यह देखकर घबरा गया और आसपास के लोगों को बुलाया और उन्हें बताया। फिर हम लोगों उसे अस्पताल ले जाने लगे। लेकिन रास्ते में ही मेरे मित्र ने दम तोड़ दिया। आसपास के पड़ोस के लोगों ने मेरे ऊपर ही इल्जाम लगा दिया कि कल ही मेरा उसे झगड़ा हुआ था और मैंने उसकी जान ली। जबकि मैंने ऐसा नहीं किया था किसी अन्य तीसरे व्यक्ति ने उसकी जान ले ली और मैं झूठे आरोप में फंस गया।
पुलिस ने मुझे गिरफ्तार कर लिया। किसी ने मेरे पक्ष में नहीं बोला। मैं चिल्लाता रह गया किसी ने मेरी नहीं सुनी। अभी मैं पिछले 6 महीनों से जेल में ही बंद हूँ और मेरा ट्रॉयल चल रहा है। देखें आगे क्या होता है।
दरअसल हमारी न्याय व्यवस्था अब इतनी सड़-गल चुकी है कि अब इसमें निर्दोष व्यक्ति को न्याय मिलना असंभव सा लगता है। क्योंकि मैं एक साधारण और गरीब व्यक्ति हूं और बहुत महंगा वकील नहीं कर सकता। ना ही मुझे अपना केस लड़ने के लिए बहुत सारा पैसा है। इस कारण में मेरी जमानत भी नहीं हो पाई और मैं 6 महीने से बिना किसी दोष के सजा भुगत रहा हूं। उम्मीद करता हूं कि हमारी न्याय व्यवस्था में कुछ सुधार हो और मुझे न्याय मिले।