Jain Parampara ke anusar Mahavir se pahle kitne Shikshak Ho chuke hain
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बहुत से इतिहासकारों एवं विद्वानों ने भगवान महावीर को जैन धर्म का संस्थापक माना है। भगवान महावीर जैन धर्म के प्रवर्तक नहीं हैं। वे प्रवर्तमान काल के चौबीसवें तीर्थंकर हैं। जैन धर्म की भगवान महावीर के पूर्व जो परंपरा प्राप्त है, उसके वाचक निगंठ धम्म (निर्ग्रंथ धर्म), आर्हत् धर्म एवं श्रमण परंपरा आदि रहे हैं। जैन धर्म के तेईसवें तीर्थंकर पार्श्वनाथ के समय तक 'चातुर्याम धर्म' था। भगवान महावीर ने छेदोपस्थानीय चारित्र (पांच महाव्रत, पांच समितियां, तीन गुप्तियां) की व्यवस्था की। लेखक ने अपने ग्रंथ 'भगवान महावीर एवं जैन दर्शन' में श्रमण परंपरा, आर्हत् धर्म, निर्ग्रंथ धर्म तथा प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव अथवा आदिनाथ, बाईसवें तीर्थंकर नेमिनाथ तथा तेईसवें तीर्थंकर पार्श्वनाथ के ऐतिहासिक संदर्भों की विस्तृत विवेचना प्रस्तुत की है।
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