Hindi, asked by Brahmmi3675, 1 year ago

jaisa karoge waisa bharoge topic in hindi

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Answered by Dia095
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गीता में सच ही कहा गया कि कर्म किए जा। फल की इच्छा न रख। अच्छे कर्म का अच्छा ही फल मिलेगा और बुरे कर्म का बुरा। व्यवहार में भी हम यही कहते और करते आए हैं। यदि किसी धुर्त का बुरा परीणाम होता है, तो कहा जाता है कि उसे सजा जरूर मिलेगी। यह सजा कब मिलेगी, इसका किसी को पता नहीं। फिर भी अच्छा कर्म करने का फल मिले या नहीं, लेकिन कर्म करने वाले को आत्मसंतोष जरूर होता है। इससे बड़ी और कोई वस्तु नहीं है।
यह कर्म मनुष्य ही नहीं जानवरों पर भी लागू होते हैं। कई बार उन्हें भी इसका फल मिलता है। करीब बीस साल पहले की बात है। एक आवारा सांड देहरादून के मुख्य चौराहों पर विचरता रहता था। आज तो पुलिस कर्मी डंडा रखने में शर्माने लगे हैं, लेकिन तब हर पुलिस वाले के पास डंडा जरूर होता था। जब भी सांड चौराहे पर खड़ा होकर यातायात में व्यावधान उत्पन्न करता, तो पुलिस कर्मी उसे डंडा दिखाकर खदेड़ देते। धीरे-धीरे सांड को डंडे से चिढ़ हो गई और वह पुलिस को देखकर उनके पीछे मारने को दौड़ने लगा। तब नगर पालिका ने सांड को पकड़कर शहर से चार किलोमीटर दूर राजपुर रोड पर राष्ट्रपति आशिया के करीब छोड़ दिया। इस क्षेत्र में सड़क किनारे राष्ट्रपति आशिया की जमीन पर काफी लंबे चौ़ड़े खेत होते थे। इनमें सेना के डेयरी फार्म के मवेशियों के लिए चारा उगाया जाता था। ऐसे में सांड को खाने की कमी नहीं थी। उस समय सुनसान सड़क वाले इस स्थान पर सांड से परेशानी हुई तो राष्ट्रीय दष्टि बाधितार्थ संस्थान के दष्टिहीनों को। पथ प्रदर्शक के लिए डंडा हाथ में होने से दष्टिहीनों के लिए मुसीबत हो गई। सांड को डंडे से चिढ़ थी। सड़क पर चलते दष्टिहीन पर नजर पड़ते ही सांड उसके समीप जाता और चुपके से सिंग से उठाकर पटक देता। उस समय करीब एक दर्जन दष्टिहीनों को वह घायल कर चुका था। तब सांड को अन्यत्र छो़ड़ने की मांग उठने लगी।
कहते हैं कि बुरा करोगे तो अंत भी बुरा ही होगा। गरमियों के दिन थे। पहले कभी मवेशियों के लिए सड़क किनारे पानी पीने की चरी होती थी, जो बाद में टुट गई। ऐसे में उन दिनों आबारा पशु ईस्ट कैनाल पर जाकर पानी पीते थे। गरमियों में नहर का पानी भी सूख गया। इस पर करीब तीन से चार किलोमीटर दूर आवारा पशु विचरण कर ऐसे स्थान पर जाते थे, जहां जल संस्थान की पानी की पाइप लाइन लीक थी। वहां जमीन पर भी काफी पानी जमा रहता था। भला हो जल संस्थान का, जिसकी उदासीनता से पशुओं को पानी जरूर मिल रहा था। एक दिन मरखोड़िया (दूसरों पर हमला करने वाला) सांड दोपहर की गर्मी में पानी पीने रिस्पना (बरसाती नदी) किनारे फूट रहे जल स्रोत पर गया। वहां पहले से ही एक छोटा सांड मौजूद था। उसे देककर मरखोड़िया सांड ने हमला बोल दिया। दोनों की लड़ाई हुई। छोटा सांड काफी फुर्तीला था, जबकि मरखोड़िया सांड प्यासा और थका होने के कारण कमजोर साबित हुआ। इस लड़ाई में छोटे सांड ने मरखोड़िया कांड के गले में सींग घुसा दी और मरखोड़िया सांड ने दम तोड़ दिया। सांड के इस दुखद अंत को देखकर मुझे दुख जरूर हआ, लेकिन राह चलने वाले लोगों ने राहत महसूस की।


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