Jaise Mein Ghar Se Nikal Par Kavita likhe
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आप दुनिया- जहान जितना चाहें घूम लें, लेकिन थक हारकर घर की तरफ ही लौटते हैं। पलायन तो रोजी-रोटी की तलाश में मजबूरी बस होता है और आदमी इन्हीं परिस्थितियों में बेघर होता है, लेकिन बे-घरी का दंश हमेशा इंसान को चुभता रहता है, बेतरह चुभता है और कई बार तो इस तरह कि आत्मा घायल हो जाए। इस दुख और एहसास को शायरों ने शिद्दत से महसूस किया और अपनी अनुभूतियों को लफ़्जों में ढाला। प्रस्तुत है घर की याद पर शायरों के कलाम-
किस से पूछूँ कि कहाँ गुम हूँ कई बरसों
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