जजमानी व्यवस्था पर टिप्पणी कम से कम 100 वर्ड
Answers
जजमानी व्यवस्था
जजमानी प्रथा के अन्तर्गत प्रत्येक जाति का एक निश्चित परम्परागत व्यवसाय होता है। इस व्यवस्था के अंर्तगत सभी जातियाँ परस्पर एक-दूसरे की सेवा करती है ब्राहमण विवाह, उत्सव, त्यौहारो के समय दूसरी जातियों के यहां पूजा-पाठ करते है। नाई बाल काटने का काम करता है, धोबी कपड़े धोने का काम करता है, चमार जूते बनाने, जुलाहा कपड़े बनाने का काम करता है इसी प्रकार सभी जातियों एक-दूसरे के लिए सेवाएं प्रदान करती है। इसके बदले में भुगतान के रूप मे कुछ वस्तुऐ या रूपये दिये जाते है। इसी व्यवस्था को हम जजमानी प्रथा या जजमानी व्यवस्था के नाम से जानते है।
जजमानी व्यवस्था का अर्थ
जजमानी व्यवस्था परम्परागत व्यवस्था पर निर्भर है। इस व्यवस्था में प्रत्येक जाति का एक निश्चित व्यवसाय तय हो जाता है जो परम्परागत होता है तथा यह पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तान्तरित होता रहता है।
जजमानी व्यवस्था परम्परागत भारतीय ग्रामीण समाज की एक प्रमुख विशेषता रही है। इसमे वंशानुगत आधार पर जातियों के द्वारा अपने व्यावसायिक कर्तव्यों का परस्पर निर्वहन किया जाता है।
जजमानी व्यवस्था की परिभाषा
आस्कर लेविस के अनुसार; इस प्रथा के अन्तर्गत एक गाँव में रहने वाले प्रत्येक जाति-समूह से यह अपेक्षा की जाती है कि वह अन्य जातियों के परिवारों को कुछ प्रमाणित सेवायें प्रदान करें।
योगेन्द्र सिंह के अनुसार; जजमानी व्यवस्था एक ऐसी व्यवस्था है जो गाँव के अन्तर्जातीय संबंधों मे पारस्परिकता पर आधारित संबंध द्वारा नियंत्रित होती है।
रेड्डी के अनुसार " जजमानी व्यवस्था मे परम्परागत रूप से एक जाति का सदस्य दूसरी जाति को अपनी सेवाएं प्रदान करता है। ये सेवा संबंध पारंपरिक रूप से शामिल होते है एवं जजमान-परजन संबंध कहलाते है।
ड्यूमा के अनुसार; जजमानी व्यवस्था वंशानुगत व्यक्तिगत संबंधों के माध्यम से श्रम विभाजन को व्यक्त करती है। यह आर्थिक प्रणाली के साथ सांस्कृतिक अभिव्यक्ति भी है।