जल की आत्म कथा C 100 words >
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जल की आत्म कथा।
मै एक पानी की बुंद हु और मै आपको मेरे बारे मे कुछ बताना चाहती हु| मेरा जन्म पानी से ही हुआ है, परंतु मै पानी से अलग नही हु| पानी का ही मै एक अंश हु | जब बारीश होती है तब भी मै एक एक बुंद बनकर बरसती हु और जब नदी को या सागर को लहरे आती है तब मै ही एक एक बुंद एक होकर बडी बडी लहरे बन जाती हु| इससे आपको पता ही चला होगा की मै छोटा बडा रूप धारण कर सकती हु |मै एक ग्लास मे रहकर आपकी प्यास बुझा सकती हु, तो नदी सागर की बडी बडी लहरे बनकर सबको डुबा सकती हु|
जब मै बरसती हु तब का नजरा सबके लिये सुख का आनंद देता है, और जब मै बरसती हुं तब जम के और भर भर के बरसती हु,मै इतनी तल्लीन हो जाती हु की जैसे ईश्वर का एक असीम भक्त अपने इष्ट के ध्यान मे लीन हो जाता है| सारी धरती को मै अपने शीतल बुंदे से स्नान करती हु, नदिया, तालाब, सागर को मै पानी से भर देती हु| सभी प्राणीयोन्कीकी मै प्यास बुझाकर उनको आनंद प्रदान करती हु| मेरे ही बरसने से आप जमीन मे खेती कर सकते है और अपना जीवन जी सकते हो|
आप सबको मेरी विनंती है की मेरा इस धरती पर अस्थित्व रखना चाहते हो, तो कृपया मै आपको जो बताने वाली हु वैसे आप किजीये, आप सबको मै बताना चाहती हु की संसार मे सभी का अस्थित्व किसी ना किसी पर निर्भर होता है, वैसे ही मेरा अस्थित्व इस प्रकृती के बनाये हुये नियम पर होता है, जैसे मेरा अस्थित्व पेड पौधो और सागर के अस्थित्व पर है, अगर आप पेड पौधे काटने लगे तो मेरा अस्थित्व धोके मे आ जायेगा और अगर मेरा अस्थित्व धोके मे आ जायेगा तो आप सभी का अस्थित्व धोके मे आ जायेगा|
पर मै आपको वादा करती की मै अपने कर्तव्य का पालन अवश्य करूंगी, जैसे हर साल मे मै बरसती हु वैसे ही अगले साल बरसुंगी और आपको आनंद प्रदान करूंगी| जब आप गरमी से परेशान हो जाते हो तब मै अपने सखीयोन्के साथ आप पर बरसुंगी और आपको शीतलता प्रदान करूंगी,छोटे छोटे बच्चो को मेरे बुंद बुंद मे नृत्य का आनंद दुंगी, किसान लोगोंको मै वादा करती हु की मै सही वक्त बरसकर आपके खेती को आवश्यक पाणी प्रदान करूंगी, आप सब की प्यास बुझाने ने के लिये नदी नाले, तालाब को भर दुंगी.........
हा पर मैने जैसे बताया वैसे ही आप करना होगा ......हमेशा प्रकृती के अटल नियम का पालन करना
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