Hindi, asked by jayasri88, 10 months ago

jal ki samasya bhavishya me kya vipathi la sakthi hi​

Answers

Answered by akshayscience009
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Answer:

sookha par jana . aakal , bhukmari ,etc

Explanation:

Answered by Sanam3152
2

Answer:

वस्तुतः जल भूमंडल में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण तत्व है जो जलचर, थलचर एवं नभचर समस्त जीवधारियों के लिये उपयोगी है। जीवमंडल जिसमें पेड़-पौधे-वनस्पतियाँ आदि भी सम्मिलित हैं, जल पोषक तत्वों के संचरण, चक्रण एवं अस्तित्व प्रदत्त करने में भी सहायक सिद्ध है। जल से विद्युत उत्पादन, नौका संचालन, फसलों की सिंचाई, सीवेज की सफाई आदि भी सहज ही संभव हो जाती है। स्पष्ट है कि जलमंडल के संपूर्ण जलसंग्र का मात्र एक प्रतिशत ही जल विविध स्रोतों- जैसे भूमिगत जल, सरित जल, झील जल, मृदा स्थित जल, वायुमंडलीय जल आदि से मानव जल प्राप्त करता है। वास्तव में जल की भौतिक, रासायनिक एवं जैवीय प्रक्रियाओं पर विपरीत-हानिकारक प्रभाव डालने वाले कारण या परिवर्तन को जल-प्रदूषण कहा जाता है। जल जो किन्हीं कारणों से दूषित है, कलुषित है, पेय नहीं है, श्रेय नहीं है उसे प्रदूषित जल की संज्ञा से अभिहित किया जाता है। जल-प्रदूषण समस्त जीवधारियों के लिये हानिकारक है। यही कारण है कि संप्रति जल प्रदूषण एक पर्यावरणीय समस्या बना हुआ है। जिसके कारण और निवारण की यहाँ प्रस्तुति है।

जल प्रदूषण को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने स्पष्ट शब्दों में परिभाषित करते हुए कहा है कि ‘प्राकृतिक या अन्य स्रोतों से उत्पन्न अवांछित बाहरी पदार्थों के कारण जल दूषित होता है तथा वह विषाक्तता एवं सामान्य स्तर से कम ऑक्सीजन के कारण जीवों के लिये हानिकारक हो जाता है तथा संक्रामक रोगों को फैलाने में सहायक होता है। इस प्रकार भौतिक, रासायनिक एवं जैविक गुणों की जल में परिवर्तनशीलता ही जल प्रदूषण का कारण बनती है। जल की निर्मिती हाइड्रोजन के दो अणुओं को ऑक्सीजन के एक अणु की समन्विति से सहज ही संभव हो जाती है। तपीय, ऊर्जा की उपस्थिति के कारण जल रंगहीन एवं पारदर्शी तत्व है परंतु जब यह दूषित हो जाता है, प्रदूषित हो जाता है तो इसका गुणधर्म परिवर्तित हो जाता है और यह उपयोगी, हानिकारक एवं अनुपयुक्त हो जाता है। यही कारण है कि समुद्री जल जो क्षारीय खारा जल है, विश्व के संपूर्ण जल का 97 प्रतिशत अंश होते हुए भी, पेय नहीं है, हानिकारक है, प्रदूषित है।

सृष्टि में वृष्टि का विशेष महत्त्व है। पानी ने विविध रूपों में परिवर्तित होकर मानव को प्राणवान बनाने में अपनी सार्थकता और उपादेयता प्रमाणित कर दी है। यही कारण है कि जल को जीवन की संज्ञा से अलंकृत एवं विभूषित किया गया है तथा उसका पर्याय सिद्ध किया गया है। वस्तुतः लोक में दो तिहाई भाग जल और एक तिहाई भाग स्थल है फिर भी संप्रति जलप्रदूषण मानव को आतंकित किए हुए है। जल सृष्टि का आधारभूत तत्व है, कारक है। जलाभाव में सृष्टि का रचनाचक्र स्थिर हो जाएगा, प्रगति चक्र रुक जाएगा, वनस्पतियाँ सूख जाएँगी और जलचर, थलचर एवं नभचर सभी काल के गाल में चले जाएँगे। इसलिये जल परम उपयोगी है, जीवनोपयोगी है और उसके अभाव में प्राणी-जीवधारी कोई भी जड़ चेतन जीवन-यापन नहीं कर सकता। जल के लिये पानी सामान्य अर्थ में प्रयुक्त होता है जब कि पर्याय रूप में,

वारि, नीर, अम्बु, वन, जीवन, तोय, सलिल, उदक।

गर करें सदुपयोग इस जल का, पशु पक्षी सभी-फुदक।।

पानी जो जीवन का पर्याय है, उसको प्रदूषित न होने देना हम सबका पुनीत कर्तव्य-कर्म एवं धर्म है। उपनिषद में कहा गया है जैसे पीएँगे पानी वैसी होगी वानी- अर्थात पानी, वाणी को परिमार्जित करता है, वाणी का संस्कार करता है। मानव जाति की आधी बीमारियाँ पानी के कारण ही हैं। पानी संप्रति प्रदूषित हो गया है। जलस्तर नीचे चला गया है। यही कारण है कि वृक्षारोपण अभियान सरकार द्वारा चलाया गया है ताकि आच्छादित प्रदेशों में वाष्पीकरण के द्वारा वर्षा भारी मात्रा में हो सके। वृक्षों की हरी-हरी पत्तियाँ जलकण वष्पन, वर्षा का कारण बनती हैं।

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