जलापूर्ति और स्वच्छता के न्यूनतम मानकों के विभिन्न घटकों की संक्षिप्त चर्चा कीजिए
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भारत में पेयजल आपूर्ति और स्वच्छता, सरकार और समुदायों के विस्तृत कार्यक्षेत्र में सुधार के विभिन्न स्तरों के लंबे प्रयासों के बावजूद अपर्याप्त है। पानी और स्वच्छता में निवेश का स्तर, अंतरराष्ट्रीय मानकों से कम है, हालांकि 2000 के बाद से इसमें वृद्धि हुई है। उदाहरण के लिए, 1980 में ग्रामीण स्वच्छता कार्यक्षेत्र का अनुमान 1% था, जोकि 2008 में बढ़कर 21% तक पहुंच गया था।[7][8] इसके अलावा, 1990 में स्वच्छ जल के बेहतर स्रोतों तक पहुंच 72% से बढ़कर 2008 में 88% हो गया था।[7] साथ ही, बुनियादी ढांचे के संचालन और रखरखाव के प्रभारी स्थानीय सरकारी संस्थानों को अशक्त माना जाता है और उनके कार्यों को पूरा करने के लिए वित्तीय संसाधनों की भी कमी रहती है। इसके साथ ही, केवल दो भारतीय शहरों में लगातार पानी की आपूर्ति है और 2008 के अनुमान के अनुसार लगभग 69% भारतीय अभी भी उन्नत स्वच्छता सुविधाओं से वंचित है।[9] वाटरएड द्वारा किए गए एक अध्ययन के अनुसार शहरी क्षेत्रों में रहने वाले 157 मिलियन लोग या 41 प्रतिशत भारतीय पर्याप्त स्वच्छता के बिना रहते हैं। स्वच्छता के बिना रहने वाले शहरी लोगों की सबसे बड़ी संख्या के कारण इस मामलें में भारत शीर्ष पर आता है। भारत, शहरी स्वच्छता संकट में सबसे ऊपर है, इसमें स्वच्छता के बिना शहरी निवासियों की सबसे बड़ी मात्रा है और तकरीबन 41 मिलियन से अधिक लोगों खुले में शौच करते हैं।[10][11]
भारत: जल और स्वच्छता
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विवरण
कम से कम बुनियादी पानी तक पहुंच
88%[1]
कम से कम बुनियादी स्वच्छता तक पहुंच
44%[1]
औसत शहरी जल उपयोग (लीटर/व्यक्ति/दिन)
126 (2006)[2]
औसत शहरी पानी और सीवर बिल
US$2 (2007)[3]
घरेलू मीटरींग का हिस्सा
55 प्रतिशत, शहरी क्षेत्रों में (1999)[4]
एकत्रित अपशिष्ट जल प्रशोधन का हिस्सा
27% (2003)[5]
जल आपूर्ति और स्वच्छता में वार्षिक निवेश
US$5 / व्यक्ति[6]