जल (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम 1974 में क्या कहा गया है? इसका संशोधन नियम भी लिखिए।
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जल (प्रदूषण निवारण तथा नियंत्रण) अधिनियम 1974 (जिसे बाद में जल अधिनियम कहा गया है) संविधान का एक अनिवार्य भाग है, जिसको जल प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण के प्रयोजन के लिये विशेष रूप से तैयार किया गया है। इसका उद्देश्य जल की स्वास्थ्यपरकता को बनाए रखना है। पर्यावरण संरक्षण अधिनियम के प्रावधानों की पुष्टि करने के लिये जल अधिनियम 1988 में संशोधन किया गया था। यह केंद्रीय अधिनियम हो जो कि जल प्रदूषण को आम जनता के लिये हानिकारक मानता है। जल अधिनियम के बनने से केंद्रीय और राज्य स्तरीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, अधिनियम के अंतर्गत नदियों और कुँओं की सफाई को बढ़ावा देने तथा जल प्रदूषण का निवारण तथा नियंत्रण करने में सक्षम हो गये हैं। केंद्रीय बोर्ड केंद्र सरकार को जल प्रदूषण से संबंधित मामलों पर सलाह दे सकता है, राज्य बोर्डों के क्रियाकलापों को समन्वित कर सकता है, जल प्रदूषण से संबंधित जाँच और अनुसंधान कर सकता है तथा जल की गुणवत्ता के मानक निर्धारित कर सकता है और जल प्रदूषण के नियंत्रण तथा निवारण के लिये विस्तृत योजनाएँ तैयार कर सकता है। अधिनियम की धारा 16 के तहत केंद्रीय सरकार द्वारा प्राधिकृत किये जाने पर केंद्रीय बोर्ड राज्य बोर्ड के कार्यों को भी कर सकता है। केन्द्रीय बोर्ड और राज्य बोर्ड के बीच कोई विवाद उत्पन्न होने पर केन्द्रीय बोर्ड का निर्णय ही मान्य होगा।
जल अधिनियम के प्रावधान नदियों, अन्त:स्थलीय जल, भूजल और समुद्री या ज्वारीय जल पर लागू होते हैं। नालों में जल निकासी और औद्योगिक अपशिष्ट पदार्थों या प्राप्त जल की गुणवत्ता के लिये अनुमेय मानक इस अधिनियम में स्पष्ट नहीं है। तथापि, अधिनियम राज्य बोर्डों को ये मानक निर्धारित करने के लिये प्राधिकृत करता है। इस अधिनियम में नदियों, कुँओं और नालों या भूमि पर राज्य बोर्डों द्वारा निर्धारित मानकों से अधिक प्रदूषित पदार्थों के उत्सर्जन पर प्रतिबंध है। अधिनियम की धारा 24 के अंतर्गत इस प्रावधान का उल्लंघन करने पर दण्डात्मक कार्रवाई भी की जा सकती है। इस अधिनियम के अंतर्गत किसी भी व्यक्ति द्वारा उद्योग स्थापित करने, उसको चलाने या इस प्रकार की किसी भी कार्रवाई से पूर्व राज्य बोर्ड से सहमति प्राप्त करना आवश्यक है। किसी भी व्यक्ति द्वारा अपशिष्ट पदार्थों का निपटान करने के लिये या जल शोधन संयंत्र लगाने के पूर्व राज्य बोर्डों से सहमति प्राप्त करना आवश्यक है (खण्ड 25)। राज्य बोर्ड का यह दायित्व है कि वह सभी सहमति आदेशों को एक रजिस्टर में दर्ज करे। जनता को भी इस रजिस्टर को देखने का अधिकार है। यदि किसी सहमति आदेश में किसी कार्य को निष्पादित किया जाना अपेक्षित है और यदि वह कार्य निष्पादित नहीं किया गया है तो राज्य बोर्ड प्रदूषक को 30 दिन का नोटिस देकर स्वयं वह कार्य निष्पादित कर सकता है और उस पर आने वाला व्यय प्रदूषक से वसूल कर सकता है (धारा 30)
वर्ष 1988 में जल अधिनियम में किए गए संशोधन से इस अधिनियम में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन आया। इस अधिनियम में 33 अ नामक एक नई धारा जोड़ी गई जिसमें राज्य बोर्डों को यह अधिकार प्रदान किया गया कि वे किसी भी व्यक्ति, अधिकारी या प्राधिकरण को बंद करने, प्रतिबंधित करने या किसी भी उद्योग अथवा उसके प्रचालन या प्रक्रिया को रोकने के आदेश जारी कर सकते हैं तथा उसे पानी, बिजली या किसी भी अन्य सेवा की आपूर्ति को रोकने के निर्देश जारी कर सकते हैं। राज्य बोर्ड प्रदूषक द्वारा जल प्रदूषण रोकने के लिये न्यायालय से भी आदेश प्राप्त कर सकते हैं। जल का प्रदूषण रोकने हेतु बोर्ड, न्यायालय से भी आदेश प्राप्त कर सकते हैं। जल का प्रदूषण रोकने से संबंधित बोर्ड पर न्यायलयों के आदेशों या निर्देशों का उल्लंघन करने पर दण्डात्मक कार्रवाई का प्रावधान है। वर्ष 1988 में जल अधिनियम में किए गए संशोधन की धारा 49 के अंतर्गत नागरिक भी जल अधिनियम के अंतर्गत कार्रवाई कर सकते हैं। शिकायत करने वाला नागरिक राज्य बोर्ड की संबंधित रिपोर्टों को देख सकता है। बोर्ड के भी उन रिपोर्टों को जनता के लिये अवश्य उपलब्ध कराना चाहिये जब तक कि उनको उपलब्ध कराना जनहित के विरुद्ध न हो।
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