जल संरक्षण क्यों आवश्यक हैं? आप जल संरक्षण कैसे कर सकते हैं?
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भूमिका वर्षों से बढती जनसंख्या, औद्योगिकीकरण में वृद्धि तथा कृषि में विस्तार होने से जल की मांग बढती जा रही है । अतएव जल संरक्षण आज की आवश्यकता बन गई है । वर्षा जल संचयन मूल्यतः भवनों की छतों पर इकट्ठा करके भूमि में संरक्षण करके आगे काम में लेने की प्रक्रिया है ।
Answer:
जल संरक्षण का अर्थ पानी बर्बादी तथा प्रदूषण को रोकने से है। जल संरक्षण एक अनिवार्य आवश्यकता है क्योंकि वर्षाजल हर समय उपलब्ध नहीं रहता अतः पानी की कमी को पूरा करने के लिये पानी का संरक्षण आवश्यक है। एक अनुमान के अनुसार विश्व में 350 मिलियन क्यूबिक मील पानी है। इसमें से 97 प्रतिशत भाग समुद्र से घिरा हुआ है। पृथ्वी पर जल तीन स्वरूपों में उपलब्ध होता है: 1. तरल जल - समुद्र, नदियाँ, झरने, तालाब, कुएँ आदि; 2. ठोस जल (बर्फ) - पहाड़ों तथा ध्रुवों पर जमी बर्फ एवं 3. वाष्प (भाप) - बादलों में भाप।
यदि हमारे देश में वर्षाजल के रूप में प्राप्त पानी का पर्याप्त संग्रहण व संरक्षण किया जाए, तो यहाँ जल संकट को समाप्त किया जा सकता है। हमारे देश की अधिकांश नदियों में पानी की मात्रा कम हो गई, इनमें कावेरी, कृष्णा, माही, पेन्नार, साबरमती, गोदावरी और तृप्ति आदि प्रमुख हैं। जबकि कोसी, नर्मदा, ब्रह्मपुत्र, सुवर्ण रेखा, वैतरणी, मेघना और महानदी में जलातिरेक की स्थिति है। ऐसे में सतही पानी का जहाँ ज्यादा भाग हो, उसे वहीं संरक्षित करना चाहिए क्योंकि अन्तरराष्ट्रीय जल प्रबंधन संस्थान के अनुसार भारत में वर्ष 2050 तक अधिकांश नदियों में जलाभाव कीस्थिति उत्पन्न होने की पूरी सम्भावना है। भारत के 4500 बड़े बाँधों में 220 अरब घनमीटर जल के संरक्षण की क्षमता है। देश के 11 मिलियन ऐसे कुएँ हैं, जिनकी संरचना पानी के पुनर्भरण के अनुकूल है। यदि मानसून अच्छा रहता है तो इनमें 25-30 मिलियन पानी का पुनर्भरण हो सकता है।
इस प्रकार जल संरक्षण की आवश्यकता स्वयं सिद्ध हो जाती है क्योंकि जल ही संपूर्ण प्राणि जगत का आधार है तथापि जल संरक्षण की आवश्यकता निम्नलिखित कारणों से है:
1. जल का समुचित वितरण एवं उपयोग सुनिश्चित करना; 2. शुद्ध जल की निरंतर हो रही कमी को पूरी करना; 3. भावी पीढ़ियों के लिये जल की उपलब्धता सुनिश्चित करना।
बूँद-बूँद से बड़ी बचत
यद्यपि पानी की एक बूँद मात्रा देखने में बहुत कम लगती है। परंतु यदि इसे न रोका जाए तो बहुत पानी बरबाद हो जाता है। निम्नलिखित विवरण से इस बात को और भी बल मिलता है अतः पानी की एक भी बूँद बर्बाद नहीं होने देनी चाहिए।
1. एक टपकते नल से प्रति सेकेंड एक बूँद बर्बाद होने से एक माह में 760 लीटर पानी व्यर्थ में ही बह जाता है।
2. सीधे नल से नहाने पर 90 लीटर पानी खर्च होता है।
3. हाथ धोकर नल ठीक प्रकार से न बंद करने पर एक मिनट में 30 बूँद पानी तथा वर्ष में 46 हजार लीटर पानी व्यर्थ चला जाता है।
4. पाइप से बगीचे की सिंचाई पर पानी की भारी बर्बादी होती है।
5. प्रेशर से कार धोने, जल की धार से सब्जियाँ धोने में पानी बर्बाद होता है।
6. खेतों में नहर या पाइप से सिंचाई करने में अधिक पानी लगता है।
7. टाॅयलेट और यूरिनल में लोग काफी पानी बर्बाद करते हैं।
8. सार्वजनिक नलों से बहता हुआ पानी पर्याप्त मात्रा में बर्बाद होता है।
9. ड्रिप सिंचाई प्रणाली से कम पानी में अधिक सिंचाई हो जाती है। इससे लगभग आधा पानी बच जाता है।
10. छोटे गिलासों में पानी पीने से पानी की बचत होती है।
11. कम रिसाव वाले मटकों का उपयोग करने से जल की बचत होती है।
12. लाॅन, पौधों आदि में शाम को ही पानी दें।
13. पर्याप्त कपड़े होने पर ही वाशिंग मशीन का उपयोग करें।
14. सब्जियाँ किसी टब या बर्तन में धोएँ।
15. फ्लश टैंक में व्यर्थ पानी का उपयोग करें।
16. वाहनों को बाल्टी में पानी लेकर धोएँ।
17. शाॅवर के बजाए बाल्टी व मग से नहाएँ।
18. बर्फ के टुकड़ों को किसी पौधे या लाॅन में डाल दें।
19. शेव, ब्रुश, मुँह आदि धोते समय लगातार नल न चलाएँ।
20. मेहमानों को आधा गिलास पानी दें बाद में माँगने पर ही और दें।
इस प्रकार इन उपायों से जल की बचत हो सकती है। बस आवश्यकता है इन पर अमल करने की। यदि इन पर या अन्य तरीकों का उपयोग किया जाए तो जल की यही बचत संग्रहण होगी।