जल संवार प्रबंधन क्या है? सतत पोषणीय विकास में इसका क्या महत्व है?
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यह सर्वविदित है कि अब भू-मंडल के दो तिहाई भाग पर जल एवं एक तिहाई भाग पर धरातलीय स्वरूप उपलब्ध है, किंतु प्रकृति प्राप्त उपलब्ध इस जल का लगभग 90 प्रतिशत भाग संप्रति प्रत्यक्ष रूप से मनुष्य के काम नहीं आता है। कुल उपलब्ध जल का 97.2 प्रतिशत भाग समुद्रों में खारे पानी के रूप में विद्यमान है, तो 22 प्रतिशत जल उत्तरी एवं दक्षिणी ध्रुवों पर बर्फ के रूप में जमा पड़ा है। लगभग 1 प्रतिशत से भी कम शेष बचा यह जल, जो प्रकृति में संचरित हो रहा है, मनुष्य के काम आता है। तीव्रगति से बढ़ रही जनसंख्या एवं उसकी भौतिक आवश्यकताओं की आपूर्ति हेतु प्रकृति में उपलब्ध यह 1 प्रतिशत से भी कम जल दिन-प्रतिदिन आनुपातिक रूप से कम होकर प्रति व्यक्ति उसकी उपलब्धता घटती जा रही है और आने वाली सदी में इस मात्रा में और भी कमी आने की सम्भावना है। अतः जलाभाव में किसी भी प्रदेश के भूमि एवं मानव संसाधनों की पोषणीयता की कल्पना नहीं की जा सकती है।
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यह सर्वविदित है कि अब भू-मंडल के दो तिहाई भाग पर जल एवं एक तिहाई भाग पर धरातलीय स्वरूप उपलब्ध है, किंतु प्रकृति प्राप्त उपलब्ध इस जल का लगभग 90 प्रतिशत भाग संप्रति प्रत्यक्ष रूप से मनुष्य के काम नहीं आता है। कुल उपलब्ध जल का 97.2 प्रतिशत भाग समुद्रों में खारे पानी के रूप में विद्यमान है, तो 22 प्रतिशत जल उत्तरी एवं दक्षिणी ध्रुवों पर बर्फ के रूप में जमा पड़ा है। लगभग 1 प्रतिशत से भी कम शेष बचा यह जल, जो प्रकृति में संचरित हो रहा है, मनुष्य के काम आता है। तीव्रगति से बढ़ रही जनसंख्या एवं उसकी भौतिक आवश्यकताओं की आपूर्ति हेतु प्रकृति में उपलब्ध यह 1 प्रतिशत से भी कम जल दिन-प्रतिदिन आनुपातिक रूप से कम होकर प्रति व्यक्ति उसकी उपलब्धता घटती जा रही है और आने वाली सदी में इस मात्रा में और भी कमी आने की सम्भावना है। अतः जलाभाव में किसी भी प्रदेश के भूमि एवं मानव संसाधनों की पोषणीयता की कल्पना नहीं की जा सकती है।