Hindi, asked by sunitayadav735583, 11 months ago

jal uplabdhta me kamiJal uplabdhta Mein Kami ​

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Answered by monasavi41198
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हाल ही में चेन्नई में निजी जल टैंकर ऑपरेटरों और पेयजल इकाइयों द्वारा की गई अनिश्चितकालीन हड़ताल ने शहर में जल वितरण को लगभग बाधित कर दिया। इस घटना ने चेन्नई में अवैध जल व्यापार की एक गंभीर तस्वीर को उकेरा जो कि ज्यादातर भारतीय शहरों में देखी जा रही है। जल के लिये टैंकर के सामने घंटों तक बड़ी संख्या में कतार में खड़े लोगों का यह दृश्य अब केवल गर्मियों में ही नहीं, बल्कि भारत के लगभग सभी प्रमुख शहरों में घटित होने वाली एक नियमित घटना है। आने वाले वर्षों में स्थिति और खराब होने की उम्मीद है क्योंकि देश भर में जल संसाधन तेज़ी से दुर्लभ हो रहे हैं।

जल से संबंधित महत्त्वपूर्ण आँकड़े

नीति आयोग ने 'समग्र जल प्रबंधन सूचकांक' (2018) नामक अपनी रिपोर्ट में रेखांकित किया है कि लगभग 600 मिलियन भारतीयों को अत्यधिक जल की कमी का सामना करना पड़ा और सुरक्षित जल की अपर्याप्त पहुँच के कारण प्रत्येक वर्ष लगभग 2,00,000 लोगों को जान गवानी पड़ी।

दरअसल, सदियों की उपेक्षा और कुप्रबंधन के कारण असंख्य छोटे जल निकायों की जल भंडारण क्षमता में भारी गिरावट आई है।

विश्व बैंक ने अपनी रिपोर्ट 'इंडियाज़ वाटर इकोनॉमी: ब्रेसिंग फॉर ए टर्बुलेंट फ्यूचर (2006)' में स्पष्ट रूप से बताया है कि भारत में बांधों में केवल 30 दिनों की वर्षा को स्टोर करने की क्षमता है।

उपर्युक्त सभी आँकड़ें यह संकेत देते हैं कि भारत में भविष्य के उपयोग के लिये जल का पर्याप्त स्टॉक नहीं है। उल्लेखनीय है कि देश में बढ़ती जल की कमी न केवल जलवायु परिवर्तन और विभिन्न क्षेत्रों से निरंतर प्रतिस्पर्द्धी मांग के कारण है, बल्कि जल की चोरी भी इसके प्रमुख कारणों में से एक है।

पेयजल एक मानवाधिकार है

28 जुलाई, 2010 को संयुक्त राष्ट्र ने जल को 'मानवाधिकार' घोषित किया था, लेकिन स्वच्छ पेयजल के अभाव और दूषित जल के सेवन से दुनिया भर में प्रतिदिन 2300 लोग असमय काल के गाल में समा जाते हैं।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक अध्ययन के अनुसार, दुनिया भर में 86% से अधिक बीमारियों का कारण असुरक्षित और दूषित पेयजल है।

संयुक्त राष्ट्र एजेंडा 2030के 17 सतत विकास लक्ष्यों के छठे लक्ष्य में 'सभी के लिये स्वच्छता और जल के सतत प्रबंधन सुनिश्चित करने' की बात कही गई है।

जल माफिया का बढ़ता प्रकोप

पानी की चोरी गंभीर परिस्थितियों को जन्म दे सकती है जिसमें पेयजल की कमी एक गंभीर समस्या है।

हाल ही के कुछ अध्ययनों में ऐसा बताया गया है कि कई बहुराष्ट्रीय पेय पदार्थ और पैकेज्ड जल का व्यापार करने वाली फर्में कई जगहों पर भूजल की चोरी करती हैं।

केरल के पलकाड ज़िले में ग्राम पंचायत प्राधिकरणों का यह आरोप है कि एक बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ 4 लाख लीटर की स्वीकार्य सीमा के अतिरिक्त प्रतिदिन लगभग 6.5-15 लाख लीटर भूजल का उपयोग करती हैं।

परिणामस्वरूप कई राज्यों जैसे - मेघालय, आंध्र प्रदेश, केरल, तमिलनाडु और राजस्थान में कुछ बहुराष्ट्रीय कंपनियों को ग्रामीणों द्वारा बड़े पैमाने पर विरोध किये जाने के बाद अपने बोटलिंग परिचालन को बंद करना पड़ा।

इसके अलावा, कई क्षेत्रों में रात के दौरान ज्यादातर होटल, मैरिज हॉल, मनोरंजन क्लब, विनिर्माण फर्म और बिल्डिंग ठेकेदार पास के तालाबों और झीलों से अवैध रूप से जल की चोरी करते हैं, जिससे गरीबों और पशुओं के लिये जल की उपलब्धता में कमी आती है।

उल्लेखनीय है कि ऐसे लोग जो गैर-कानूनी बहु-मंजिली इमारतों और मलिन बस्तियों में रहते हैं और जो किसी भी आधिकारिक पानी पाइपलाइन से जुड़े हुए नहीं हैं, आम तौर पर पानी की चोरी करने में शामिल रहते हैं।

उदाहरण के तौर पर, मुंबई में एक आवासीय कॉलोनी, जिसे कोई व्यवसायिक/आधिकारिक प्रमाण-पत्र प्राप्त नहीं था, को लगभग 25 वर्षों तक पाइपलाइनों से पानी चोरी करने के लिये वर्ष 2017 में बीएमसी द्वारा दंडित किया गया था।

दिल्ली, मुंबई, बंगलूरु और चेन्नई जैसे महानगरों में लगभग 2,000 से 10,000 निजी जल टैंकर दैनिक आधार पर अवैध रूप से जल की सप्लाई का काम करते हैं, जिससे जल की आपूर्ति का अधिकांश भार उद्योगों पर आ जाता है।

इसे गुड़गांव के उदहारण से समझा जा सकता है जहाँ अनुमान लगाया गया है कि लगभग 50 लाख लीटर भूजल दैनिक आधार पर टैंकर माफिया द्वारा अवैध रूप से निकाला जाता है तथा औद्योगिक इकाइयों और निर्माण स्थलों को बेचा जाता है, साथ ही सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वायरनमेंट के अनुसार, गुड़गांव में लगभग 20,000 गैर-कानूनी ढंग से टैंकरों हेतु कुएं खोदे गए थे। यही कारण है कि जून 2017 में जारी किये गए CGWB डेटा के अनुसार दिल्ली में वार्षिक भूजल में कमी का स्तर बहुत अधिक है।

Answered by vipbhai
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