CBSE BOARD X, asked by kprahlad099, 1 year ago

jaliyanvaala bagh hatyakaand in hind​

Answers

Answered by shreyash70019
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Answer:

The Jallianwala Bagh massacre, also known as the Amritsar massacre, took place on 13 April 1919 when Acting Brigadier-General Reginald Dyer ordered troops of the British Indian Army to fire their rifles into a crowd of unarmed Indian civilians in Jallianwala Bagh, Amritsar, Punjab, killing at least 400, including 41 children, one only six weeks old. Over 1,000 were injured.

The Jallianwalla Bagh is a public garden of about 6.27 acres (2.54 ha), walled on all sides, with only five narrow entrances.[2] Dyer blocked the main exits, and the troops continued to fire into the fleeing civilians until their ammunition was almost exhausted. He later declared his purpose was not to dispel the rally, but to "punish the Indians".[3] He did not stay to count the dead, much less offer aid, and his curfew condemned many of the wounded to die overnight where they lay.

On Sunday, 13 April 1919, Dyer, convinced a major insurrection could take place, banned all meetings. This notice was not widely disseminated, and many villagers gathered in the Bagh to celebrate the important Sikh festival of Baisakhi, and peacefully protest the arrest and deportation of two national leaders, Satyapal and Saifuddin Kitchlew. Dyer and his troops entered the garden, blocking the main entrance behind them, took up position on a raised bank, and with no warning opened fire on the crowd for about ten minutes, directing their bullets largely towards the few open gates through which people were trying to flee, until the ammunition supply was almost exhausted. The following day Dyer stated in a report that "I hear that between 200 and 300 of the crowd were killed.

Explanation:

जालियाँवाला बाग हत्याकांड भारत के पंजाब प्रान्त के अमृतसर में स्वर्ण मन्दिर के निकट जलियाँवाला बाग में १३ अप्रैल १९१९ (बैसाखी के दिन) हुआ था। रौलेट एक्ट का विरोध करने के लिए एक सभा हो रही थी जिसमें जनरल डायर नामक एक अँग्रेज ऑफिसर ने अकारण उस सभा में उपस्थित भीड़ पर गोलियाँ चलवा दीं जिसमें 400 से अधिक व्यक्ति मरे[2] और २००० से अधिक घायल हुए।[3][4] अमृतसर के डिप्टी कमिश्नर कार्यालय में 484 शहीदों की सूची है, जबकि जलियांवाला बाग में कुल 388 शहीदों की सूची है। ब्रिटिश राज के अभिलेख इस घटना में 200 लोगों के घायल होने और 379 लोगों के शहीद होने की बात स्वीकार करते है जिनमें से 337 पुरुष, 41 नाबालिग लड़के और एक 6-सप्ताह का बच्चा था। अनाधिकारिक आँकड़ों के अनुसार 1000 से अधिक लोग मारे गए और 2000 से अधिक घायल हुए।

यदि किसी एक घटना ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम पर सबसे अधिक प्रभाव डाला था तो वह घटना यह जघन्य हत्याकाण्ड ही था। माना जाता है कि यह घटना ही भारत में ब्रिटिश शासन के अंत की शुरुआत बनी।[5][6]

१९९७ में महारानी एलिज़ाबेथ ने इस स्मारक पर मृतकों को श्रद्धांजलि दी थी। २०१३ में ब्रिटिश प्रधानमंत्री डेविड कैमरॉन भी इस स्मारक पर आए थे। विजिटर्स बुक में उन्होंनें लिखा कि "ब्रिटिश इतिहास की यह एक शर्मनाक घटना थी।"[7]

जलियाँवाला बाग राष्ट्रीय स्मारक (संशोधन) विधेयक,2019

राज्यसभा में 19 नवंबर 2019 को पारित होने के पश्चात यह विधेयक संसद से पारित हो गया।इससे पूर्व लोकसभा में 02 अगस्त 2019 को पारित किया गया था।

केंद्रीय संस्कृति मंत्री प्रहलाद सिंह पटेल ने बिल पेश करते हुए कहा कि जलियांवाला बाग एक राष्ट्रीय स्मारक है तथा घटना के वर्ष 2019 में,100 साल पूरे होने के अवसर पर हम इस स्मारक को राजनीति से मुक्त करना चाहते हैं।

विधेयक में प्रमुख प्रावधान

इस विधेयक के द्वारा जलियांवाला बाग राष्ट्रीय स्मारक अधिनियम 1951 में संशोधन किया गया।

इस संशोधन बिल में जलियांवाला बाग राष्ट्रीय स्मारक अधिनियम में कांग्रेस के अध्यक्ष को स्थायी सदस्य के तौर पर हटाने का प्रावधान है।

विधेयक यह स्पष्ट करता है कि जब लोकसभा में विपक्ष का कोई नेता नहीं होता है, केवल सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता को ट्रस्टी बनाया जाएगा.

यह विधेयक केंद्र सरकार को यह अधिकार दिया है कि वह ट्रस्ट के किसी सदस्य को उसका कार्यकाल पूरा होने से पहले ही हटा सकती है.

इस संशोधन के बाद भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष का न्यास के पदेन सदस्य होने का हक समाप्त हो जायेगा। उसके जगह पर लोकसभा में विपक्ष के नेता या सबसे बड़े दल के नेता को सदस्य बनाया जायेगा।

जनता द्वारा वित्त पोषित,जलियांवाला बाग ट्रस्ट की स्थापना साल 1921 में की गई थी। इसके नए न्यास का गठन साल 1951 में किया गया।नए न्यास में व्यक्ति विशेष को सदस्य बनाया गया तथा किसी संवैधानिक पद पर आसीन व्यक्ति को इसमें शामिल नहीं किया गया था।

अब,सरकार निर्वाचित लोगों को संवैधानिक और प्रशासनिक पदों में शामिल कर रही है।किसी विशेष व्यक्ति को नामित नहीं किया जायेगा।साथ ही, इन सदस्यों को हर पांच साल के बाद बदल दिया जायेगा।साथ ही, शहीदों के परिजनों को भी ट्रस्ट में शामिल किया जायेगा।[8]

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