Hindi, asked by behulatudu75, 6 months ago

जलवायु की भिन्नता क्या-क्या प्रभाव डालती है?​

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Answered by anandkalief
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Answer:

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Answered by Anonymous
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Explanation:

अपनी विशिष्ट ऊंचाई के कारण पर्वत अपनी जलवायु का स्वयं निर्धारण करते हैं चाहे वह कहीं भी स्थित हों। सामान्यतः पर्वतीय जलवायु एक विशिष्ट ऊंचाई पर लगभग 3000 मीटर (10,000 फीट), जहां हिम का स्थायित्व होता है, के ‘मौसम’ का ही एक अस्पष्ट सा नाम है।

मौलिक रूप से पर्वतीय मौसम की विशेषता है वायु का तीव्र वेग, गिरता हुआ तापमान और ऊंचाई बढ़ने के साथ पानी का हिम में बदल जाना, साथ ही शीत ऋतु का अधिक ठंडी तथा ग्रीष्म ऋतु का कम गर्म रहना है।

पर्वतों पर मौसम बहुत तेजी से, कभी-कभी नाटकीय रूप से बदलता रहता है। कहा जाता है कि पर्वतों पर कभी-कभी एक ही दिन में वर्ष के चार विभिन्न मौसमों को देखा जा सकता हैं। कभी निर्मल आकाश में खिली धूप चंद क्षणों मंक ठंडी हवा, उड़ते हुए बादल, घनघोर वर्षा व कड़कड़ाती ठंड में बदल जाती है। मौसम की अनिश्चितता पर्वतों की विशेषता होती है।

पर्वत के विभिन्न स्तरों यानी ऊंचाई पर भांति-भांति की जलवायु पाई जाती है। जहां निचले भागों में गर्म जलवायु होती है वहीं ऊपर जाने पर तापमान लगातार गिरता जाता है। इसी प्रकार जलवायु का परिवर्तन वहां के जीव-जंतु तथा वनस्पतियों की उपस्थिति पर भी व्यापक प्रभाव डालता है।

भूमंडलीय जलवायु पर प्रभाव

पर्वत स्थानीय जलवायु पर ही नहीं अपितु भूमंडलीय जलवायु को भी प्रभावित करते हैं। लेकिन पृथ्वी की पर्वत श्रृंखलाएं नाटकीय ढंग से भूमंडलीय जलवायु पर प्रभाव डालती हैं।

पृथ्वी के वायुमंडल में हवा का अधिकतर बहाव पृथ्वी के अपने अक्ष पर घूमने और कोरिऑलिस बल के कारण पूर्व-पश्चिम प्रवृत्ति का है। परिणामतः उत्तर-दक्षिण में स्थित पर्वत श्रृंखलाएं सामान्य परिसंचरण को प्रभावित कर सकती हैं। यद्यपि कुछ हवा बल के साथ पर्वतों के ऊपर उठती हैं जो ऊपर उठने के कारण स्थानीय मौसमी परिघटना को प्रभावित करती है।

जलवायु का स्थानीय प्रभाव

पर्वत स्थानीय जलवायु पर गहरा प्रभाव छोड़ते हैं। पर्वतीय जलवायु मुख्यतः तीन कारकों तापमान, नमी तथा वायु के दबाव के अंतर पर निर्भर करती है। वायु का दबाव पर्वत की ऊंचाई के साथ कम होता जाता है। वायु का दबाव मौसम पर भी निर्भर करता है किन्तु सामान्य नियमानुसार 2000-3000 मीटर तक प्रत्येक 8 मीटर की ऊंचाई पर यह 1 मिलीबार कम हो जाता है। लेकिन उससे ऊपर बहुत कम गिरावट होती है जैसे कि माउंट एवरेस्ट के शिखर (8,848 मीटर) पर यह 300 से 360 मिलीबार होता है। यह जानना भी आवश्यक है कि समुद्र तट पर वायु का दबाव 1013 मिलीबार होता है।

वायु के दबाव में कमी होने के कारण पर्वतों की विभिन्न ऊंचाइयों पर नमी की मात्रा समीप के निचले क्षेत्र से अधिक होती जाती है। समुद्र तल के अनुपात में अधिक ऊंचाई होने के कारण पर्वतों पर तापमान ठंडा होता है। इसके फलस्वरूप वहां वर्षा भी अधिक होती है और ऊंची चोटियां तो सदैव हिम से ढकी रहती हैं। समुद्र सतह से कोई स्थान जितनी अधिक ऊंचाई पर स्थित होगा वहां ठंड भी उतनी ही अधिक होगी।

अधिक ऊंचाई पर वायु का घनत्व कम होने के कारण वायु कम ऊष्मा अवशोषित कर पाती है। अतएव वायु ठंडी हो जाती है। कम तापमान होने के कारण वहां वाष्पीकरण की दर कम होने से हवा में नमी अधिक होती है। जैसे यह नमीयुक्त वायु ऊपर उठती है तो और अधिक ठंडी होकर वायु में स्थित वाष्प के कणों को द्रवित कर देती है। इस प्रकार बादलों की रचना होती है। जब वायु पर्वत श्रृंखला के विपरीत ऊपर उठती है तब पर्वत के बल से हवा ऊपर उठती है। जब वायु पहाड़ी ढलान पर ऊपर की ओर बहती है तब ऊपर उठती हवा ठंडी होती है। इस बल के कारण वायु में उपस्थित जलवाष्प संघनित हो जाती है। यदि हवा पर्वत श्रृंखला के पवनाभिमुख भाग (वह भाग जहां से पवनें चलती हैं) से ऊपर की ओर बल लगाती है तब बादल बनते हैं और या तो वर्षा होती है या हिमपात। इसे ‘ऑरोग्राफिक लिफ्टिंग’ यानी ‘पर्वतीय उत्थान’ कहते हैं और यह बताता है कि संघनन क्यों होता है अथवा पर्वतीय क्षेत्रों में पर्वतीय प्रभाव बहुत ऊंचाई पर और पवनाभिमुख भाग की ओर स्थित होते हैं। यही कारण है कि पर्वतों पर निकट की घाटियों की अपेक्षा अधिक हिम जमा होता है। पर्वतों पर होने वाली भारी वर्षा अकस्मात बाढ़ का कारण बनती है।

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