जम्मू कश्मीर राज्य को कौन से विशेष शक्ति प्राप्त है
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जम्मू कश्मीर के संबंध में संविधान के अनुच्छेद 370 में ‘अस्थायी प्रावधान' थे, जिसके तहत राज्य का अपना संविधान होने की अनुमति दी गयी थी. इस विवादित अनुच्छेद को सोमवार को समाप्त कर दिया गया है.
इसके मुताबिक, राज्य पर भारतीय संविधान के सिर्फ अनुच्छेद एक और अनुच्छेद 370 के प्रावधान लागू होते हैं. अनुच्छेद एक कहता है कि भारत राज्यों का संघ होगा और भारत के क्षेत्र में राज्यों के क्षेत्र, केंद्रशासित प्रदेशों के क्षेत्र तथा अधिग्रहण किये गये क्षेत्र शामिल होंगे. अगर केंद्र विलय पत्र में शामिल विषयों रक्षा, विदेश और संचार से संबंधित केंद्रीय कानून को राज्य में लागू करना चाहती है तो उसे राज्य से सिर्फ ‘सलाह-मशविरा' की जरूरत है, जबकि इनके अलावा, अन्य विषयों पर राज्य सरकार की ‘सहमति' अनिवार्य है. जम्मू कश्मीर के तत्कालीन शासक राजा हरि सिंह ने 26 अक्तूबर 1947 को विलय पत्र पर हस्ताक्षर किये थे जिसकी धारा पांच में उल्लेख है कि विलय की शर्तों को अधिनियम में या भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम में कोई भी संशोधन करके नहीं बदला जा सकता है और इसे तभी बदला जा सकता है जब पूरक दस्तावेज के जरिये वह इस तरह के संशोधन को स्वीकार करें.
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 35ए, अनुच्छेद 370 में से ही निकला है. यह जम्मू कश्मीर विधानसभा को राज्य के स्थायी निवासी, उनके अधिकारों और विशेषाधिकारों को परिभाषित करने की शक्ति देता है. जम्मू कश्मीर के संविधान को 17 नवंबर 1956 को अंगीकृत किया गया था जिसमें स्थायी निवासी को ऐसे व्यक्ति के तौर पर परिभाषित करता है जो 14 मई 1954 तक राज्य की प्रजा था या उस तारीख को 10 साल से राज्य का निवासी रहा है और उसके पास कानूनी रूप से हासिल की गयी संपत्ति हो. गैर स्थायी निवासी अचल संपत्ति नहीं खरीद सकते हैं, सरकारी नौकरी नहीं पा सकते हैं, राज्य सरकार द्वारा प्रदत्त छात्रवृत्ति या अन्य सरकारी मदद नहीं ले सकते हैं. इस अनुच्छेद को 1954 में राष्ट्रपति के आदेश के जरिये संविधान में जोड़ा गया है न कि संसद में संशोधन लाकर. अनुच्छेद 35ए संविधान के मुख्य अंग में नहीं मिलता है और यह परिशिष्ट एक में मिलता है.