जमींदार होने के बाद भी नारायण सिंह बहुत सादा जीवन व्यतीत करते थे । उनका मकान बड़ी हवेली या किला नहीं था बल्कि बॉस और मिट्टी से बना साधारण मकान था । वे आम जनता के बीच समरस होकर ही अपने क्षेत्र का दौरा करते थे और रैयत की समस्याओं एवं कठिनाइयों का हल खोजते थे
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वीर नारायण सिंह (१७९५ - १८५७) छत्तीसगढ़ राज्य के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, एक सच्चे देशभक्त व गरीबों के मसीहा थे। १८५७ के प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम के समय उन्होने जेल से भागकर अंग्रेजों से लोहा लिया था जिसमें वे गिरफ्तार कर लिए गए थे। १० दिसम्बर १८५८ को उन्हें रायपुर के "जय स्तम्भ चौक" पर फाँसी दे दी गयी।
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