Math, asked by llAhirll, 19 days ago

जमीं दुश्मन जमां दुश्मन जो अपने थे पराये हैं, सुनोगे दास्तां क्या तुम मेरे हाले-परीशां की ।​

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Answered by iraksharani
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जयंती पर विशेष

देश की आजादी के लिए हंसते हंसते प्राण न्यौछावर करने वाले अशफाक उल्ला खाँ हिन्दू मुस्लिम एकता के प्रबल पक्षधर थे। काकोरी कांड के सिलसिले में 19 दिसम्बर, 1927 को उन्हें फैजाबाद जेल में फाँसी पर चढ़ा दिया गया। अशफाक उल्ला खाँ ऐसे पहले मुस्लिम थे, जिन्हें षड्यंत्र के मामले में फाँसी की सजा हुई थी। उनका हृदय बड़ा विशाल और विचार बड़े उदार थे। हिन्दू मुस्लिम एकता से सम्बन्धित संकीर्णता भरे भाव उनके हृदय में कभी नहीं आ पाये। सब के साथ सम व्यवहार करना उनका सहज स्वभाव था। कठोर परिश्रम, लगन, दृढ़ता, प्रसन्नता, ये उनके स्वभाव के विशेष गुण थे।

अशफाक उल्ला खाँ का जन्म 22 अक्टूबर, 1900 को शाहजहाँपुर जिले मेे हुआ था। इनके पिता का नाम मोहम्मद शफीक उल्ला खाँ था, जो एक पठान परिवार से ताल्लुक रखते थे तथा माता मजहूरुन्निशाँ बेगम थीं। इनकी माता बहुत सुन्दर थीं और खूबसूरत स्त्रियों में गिनी जाती थीं। इनका परिवार काफी समृद्ध था। परिवार के सभी लोग सरकारी नौकरी में थे। किंतु अशफाक को विदेशी दासता विद्यार्थी जीवन से ही खलती थी। वे देश के लिए कुछ करने को बेताव थे। बंगाल के क्रांतिकारियों का उनके जीवन पर बहुत प्रभाव था।अपनी बाल्यावस्था में अशफाक उल्ला खाँ का मन पढ़ने लिखने में नहीं लगता था। खन्नौत में तैरने, घोड़े की सवारी करने और भाई की बन्दूक लेकर शिकार करने में इन्हें बड़ा आनन्द आता था। ये बड़े सुडौल, सुन्दर और स्वस्थ जवान थे। चेहरा हमेशा खिला रहता था और दूसरों के साथ हमेशा प्रेम भरी बोली बोला करते थे। बचपन से ही उनमें देश के प्रति अपार अनुराग था। देश की भलाई के लिये किये जाने वाले आन्दोलनों की कथाएँ वे बड़ी रूचि से पड़ते थे। अशफाक कविता आदि भी किया करते थे। उन्हें इसका बहुत शौक था। उन्होंने बहुत अच्छी-अच्छी कवितायें लिखी थीं, जो स्वदेशानुराग से सराबोर थीं। कविता में वे अपना उपनाम हसरत लिखते थे। उन्होंने कभी भी अपनी कविताओं को प्रकाशित कराने की चेष्टा नहीं की। उनका कहना था कि हमें नाम पैदा करना तो है नहीं। अगर नाम पैदा करना होता तो क्रान्तिकारी काम छोड़ लीडरी न करता उनकी लिखी हुई कविताएँ अदालत आते जाते समय अक्सर काकोरी कांड के क्रांतिकारी गाया करते थे। अपनी भावनाओं का इजहार करते हुए अशफाकउल्ला खाँ ने लिखा था कि जमीं दुश्मन, जमां दुश्मन, जो अपने थे पराये हैं, सुनोगे दास्ताँ क्या तुम मेरे हाले परेशाँ की। देश में चल रहे आन्दोलनों और क्रांतिकारी गतिविधियों से अशफाक उल्ला खाँ प्रभावित होने लगे थे।धीरे धीरे उनमें क्रान्तिकारी भाव पैदा होने लगे। उनको बड़ी उत्सुकता हुई कि किसी ऐसे आदमी से भेंट हो जाये, जो क्रान्तिकारी दल का सदस्य हो। उस समय मैनपुरी षड़यन्त्र का मामला चल रहा था। अशफाक शाहजहाँपुर में ही स्कूल में शिक्षा पाते थे।

मैनपुरी षड़यन्त्र में शाहजहाँपुर के ही रहने वाले एक नवयुवक के नाम भी वारण्ट निकला था। वह नवयुवक और कोई नहीं, रामप्रसाद बिस्मिल थे।

Answered by MichTeddy
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जमीं दुश्मन जमां दुश्मन जो अपने थे पराये हैं, सुनोगे दास्तां क्या तुम मेरे हाले-परीशां की

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