Hindi, asked by bhawnadongre15, 1 month ago

जन 1 संदर्भ एवं प्रसंग सहित व्याख्या कीजिए "उन देयपुत्रों की आशा छोड़ो जो सामान्य शोक के आघात से छुईमुई की भाति मुरझा जाते हैं। जिस आधार पर खडे होने जा रहे हो वह दुर्बल है। संभल जाओ जवानों मृत्यु का भय मिथ्या है, कालव्य में प्रसाद करना पाप है। संकोच और दुविधा अभिशाप है।​

Attachments:

Answers

Answered by shishir303
0

“उन देवपुत्रों की आशा छोड़ो जो सामान्य शोक के आघात से छुई मुई की भांति मुरझा जाते हैं जिस आधार पर खड़े होने जा रहे हो वह दुर्बल है। संभल जाओ जवानों मृत्यु का भय मिथ्या है कर्त्तव्य में प्रसाद करना पाप है। संकोच और दुविधा अभिशाप है।”

संदर्भ : ‘पंडित हजारी प्रसाद द्विवेदी’ द्वारा रचित “बाणभट्ट की आत्मकथा” उपन्यास की इन पंक्तियों का भावार्थ इस प्रकार है।

व्याख्या : लेखक कहता है कि भोग-विलास में लिप्त उन राजपुरुषों से किसी भी तरह की आशा करना बेकार है, जो जीवन में छोटा सा दुख आने पर भी उसका सामना नही कर पाते।  कमजोर नींव पर मजबूत इमारत टिकी नही रह सकती। यानि अपना चरित्र ही जब कमजोर हो जीवन में बड़े लक्ष्य प्राप्त नही किये जा सकते। समय पर संभल जाने में समझदारी है, और अपने दुर्गुणों को पहचान कर उन्हे दूर करके सही रास्ते पर आगे बढ़ना चाहिये। अपने कर्तव्य को पूरा करने के लिये किसी भी तरह की सोच-विचार करना ठीक नही है।

○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○

Similar questions