Hindi, asked by shamashaikh828, 28 days ago

जन्म : १९३८, उज्जैन (म.प्र.)
परिचय : हास्य-व्यंग्य के सशक्त
हस्ताक्षर माणिक वर्मा जी वाचिक
परंपरा में प्रमुख स्थान रखते हैं ।
आपके व्यंग्य बड़े ही धारदार होते हैं।
आपकी गजलें बहुत ही प्रेरणादायी
होती हैं।
प्रमख कृतियाँ : 'गजल मेरी इबादत​

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Answered by manishgodara7851
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Answer:

b>गजल<b>

-माणिक वर्मा

<b>परिचय<b>

जन्म : १९३८, उज्जैन (म.प्र.) परिचय : हास्य-व्यंग्य के सशक्त हस्ताक्षर माणिक वर्मा जी वाचिक परंपरा में प्रमुख स्थान रखते हैं । आपके व्यंग्य बड़े ही धारदार होते हैं। आपकी गजलें बहुत ही प्रेरणादायी होती हैं। <b>प्रमुख<b><b>कृतियाँ:<b> ‘गजल मेरी इबादत है', 'आखिरी पत्ता' (गजल संग्रह), 'आदमी और बिजली का खंभा', 'महाभारत अभी जारी है', 'मुल्क के मालिकों जवाब दो' आदि ।

<b>पदय<b> <b>संबंधी<b>

प्रस्तुत गजल के अधिकांश शेरों में वर्मा जी ने हम सबको जीवन में निरंतर अच्छे कर्म करते हुए आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया है ।

अपने रूप-रंग से सुंदर दिखने के बजाय अपने कर्मों से सुंदर दिखना आवश्यक है।

आपसे किसने कहा स्वर्णिम शिखर बनकर दिखो, शौक दिखने का है तो फिर नींव के अंदर दिखो।

चल पड़ी तो गर्द बनकर आस्मानों पर लिखो, और अगर बैठो कहीं तो मील का पत्थर दिखो ।

सिर्फ देखने के लिए दिखना कोई दिखना नहीं, आदमी हो तुम अगर तो आदमी बनकर दिखो ।

जिंदगी की शक्ल जिसमें टूटकर बिखरे नहीं, पत्थरों के शहर में वो आईना बनकर दिखो ।

आपको महसूस होगी तब हरइक दिल की जलन, जब किसी धागे-सा जलकर मोम के भीतर दिखो ।

एक जुगनू ने कहा मैं भी तुम्हारे साथ हूँ, वक्त की इस धुंध में तुम रोशनी बनकर दिखो ।

एक मर्यादा बनी है हम सभी के वास्ते, गर तुम्हें बनना है मोती सीप के अंदर दिखो ।

डर जाए फूल बनने से कोई नाजुक कली, तुम ना खिलते फूल पर तितली के टूटे पर दिखो ।

कोई ऐसी शक्ल तो मुझको दिखे इस भीड़ में, मैं जिसे देखू उसी में तुम मुझे अक्सर दिखो ।

('गजल मेरी इबादत है' से)

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