५. जन नदियाँ एवं प्रकृति का महत्त्व बताते
hua कविता लिखिए।
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Explanation:
आंखों की नमी
बचा सको तो बचाओ
पर्वत पुत्र
यह समय की धार
लोहे को जलाकर
कुदाली बनाये या तलवार
तय करना है यही
जैसे
कांच की तरह
चट्टानों से बहती धार
नदी बने या भाल
मुनाफा बने या
संस्कृति का हार
इस नदी का काम बहना है
वह बह रही है
उसके जंगल, उसके लोग
भाषा में उसकी ही
कह रहे हैं
पत्थर नदी की भीतरी सतह के
रेत और शैवाल
मछलियां-जल जंतु
और यह गर्वीला पहाड़
सब नदी का है
पर नदी है तो किसकी है?
अपनी ही कहां है वह इसीलिए सबकी है।
सख्त दिखने वाले पर्वतों का भीतरी संसार
बेहद तरल है
उनमें पानी भरा है
स्रोत है अविराम बहते
पेड़ों की जड़ों से घुले स्रोत
कौन जाने
कैसी है नदी की भीतरी दुनिया
कौन जाने
कैसा है पर्वतों का अगम और अचूक संसार
बोलियां अब
लग चुकी हैं नदियों को बेचने की
पर्वत को खरीद चुके हैं लोग
चुप हैं सरकारों के नंगे दलाल कुछ
चुप हैं गांव का आने वाला समय
चुप है बहाव नदियों और समय का बहाव
चुप है हर जुबान
चुप है आने वाले समय की वीरान और सूखी नदी
चुप हैं पुरस्कारों के तमगे पहने मुखौटे
चुप हैं नदी और पहाड़ से कुछ लोग
चुप हैं पृथ्वी के हर संकट के श्वेत पत्र पर
हस्ताक्षर करने वाले बुद्धिजीवियों की
अनर्गल बहसें
बोलती है तो बस नदी
बोलती है तो नदी की आवाज
बोलती है तो लगातार तटों के पास आती
और उनको छोड़ती
चली जाती
नदी
एक नदी है अनेक नदियां
अनेक नदियां हैं अनेक जमीनें
अनेक जमीनें हैं अनेक जंगल
अनेक जंगल हैं बादल अनेक
नदी, नदी के लिए है, जमीन, जमीन के लिए,
जंगल, जंगल के लिए
ये देते हैं सबको बिन मांगे
इनका कानून सबसे ऊपर
थोपो मत अपने को इन पर
नदी के ऊपर
कोहरे की नदी
कोहरे में डूबा-बोलता जंगल
हवाओं की तरह
शिराओं में बहता खून
ऑक्सीजन का भंडार
भरा-पूरा संसार
हर नदी का उद्गम यह
बोलियों और गीतों का उद्गम यह
नृत्यों और गाथाओं की अटल गहराई यह
ढोल बजाने वाले
हाथों से नहीं
दिल से बजाते हैं ढोल
भाषा है उसकी
भाषा ये है उसकी
बोल है अलग-अलग
संदेश है एक उसका
नदियों के किनारे
झरनों के पास
कभी उठाओ गीत
लगाओ आवाज
तो टूट जायेगा भ्रम
बन जायेगी यह प्रकृति की ऊर्जा
हमारा होना – नदी के होने के भीतर है कहीं
हमारा होना – दुनिया की नदियों के इर्द-गिर्द है कहीं
नदी की नमी
बचा रही हैं पर्वत पुत्रियां
मायके को छोड़कर जाती हुई।
जाती हुई
पर्वत पुत्रियों के हाथ
अभी भी पकड़े हुए हैं
मायके की हथेली
रोज-रोज
तोड़ते हैं नदी का मायका जो
तोड़ रहे हैं वे
अपने को
अपने भीतर की नदी को
अपने भीतर की नदियों को
यह कैसा विकास
जो मुझे भी चाहिये और तुम्हे भी
फूल को भी चाहिये और फल को भी
गांव को भी चाहिये और शहर को भी
आकाश को भी चाहिये और पृथ्वी को भी
विकास
चाहिये हमें
पर चाहिये हमें उससे भी पहले
सांस
सांसो की नदी
चाहिये सबसे पहले हमें
सांसों का घना जंगल
सदियों के लिये
नदियों के लिए जंगल
और जंगल के लिये
चाहिये हमें नदियां
समुद्र को
सबसे ज्यादा चाहिये नदियां
और नदियों को
सबसे ज्यादा चाहिये
कई समुद्र
समुद्र का भीतरी
अबूझा जंगल
तय करता है
पृथ्वी के जंगल का स्वाभाविक आकार
स्वाभाविक
हां स्वाभाविक भी
और आकार भी
चाहिये
अपनी तरह से जीने वाली पृथ्वी
दूसरों के लिए बनी पृथ्वी
मंदिर की तरह
प्यास का विकल्प बनती बावड़ियां
अमृत है नदी
पहेली की तरह बहती चली दूर तक
उसके भीतर भी लहरें
उसके बाहर भी लहरें
कोई भी नहीं गिन पाया इन्हें
गिनती से बहुत आगे हैं
नदी की लहरें
उत्तरों से परे हैं नदी के सवाल
इतिहास और भूगोल
विज्ञान और भूगर्भीय तथ्य
यह सभी
हां यह सभी तो
नदी की देन है
न सोचकर भी लगता है भयावह
कि
कैसा होगा नदी के बिना संसार
शायद अगर मृत्यु है तो
यही है
बिना नदी का संसार
शायद ही नहीं निश्चित है
कि जीवन के बढ़ते चरण अगर बोल रहे हैं
तो नदी के कारण ही बोल रहे हैं
नदी की भाषा की वर्णमाला
पढ़ पायें हैं तो
उसे जीवित रखने वाली गांव की सुबह और
गांव की शाम और गांव की रात
सूर्य प्रणाम है नदी की भाषा
वही है योग का आधार एक