जन सेवा हीच ईश्वर सेवा कल्पना विस्तार
Answers
जन सेवा ही ईश्वर सेवा हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो नर सेवा ही नारायण सेवा हैं।
मानव जिस समाज में पैदा हुआ हैं, जिसमें पलकर बड़ा हुआ हैं, उस समाज के प्रति उसका बहुत बड़ा कर्त्तव्य हैं। उसे बड़ा होने में पता नहीं कितने तत्त्वों का उस पर उपकार हैं। उसके बचपन की गुड्डी गुड़ियाओं से लेकर साथ खेलने वाले पशु -पक्षी तक। उसके बचपन के मित्रों से लेकर आज के व्यावसायिक साथी।
इन सभी का उसकी सफलता में कुछ न कुछ हाथ जरूर हैं। इसलिये इन सभी के प्रति उसका कर्त्तव्य जरूर हैं। इस कर्त्तव्य का निर्वाह करने के लिये भी जन सेवा आवश्यक हैं। संसार में पैदा तो पशु भी होते हैं और अपना जीवन निर्वाह करते हैं किन्तु मानव को मानव बनाती है उसके परोपकार की भावना।
दीन दुखियों की निस्वार्थ भावना से सेवा करने से यश और कीर्ति प्राप्त होती हैं। मदर टेरेसा आज भी अमर हैं उन्हैं सारा विश्व जानता हैं उनकी कीर्ति है।
दीन दुखियों की सेवा करने से ईश्वर भी प्रसन्न होते हैं। क्योंकि यहीं ईश्वर की सेवा हैं। यहीं मनुष्य के सत्कर्म हैं।