Hindi, asked by 8294843904priya, 7 months ago

जनहित में विज्ञापनों का महत्वपूर्ण योगदान​

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Answered by sanjay047
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Explanation:

जनहित याचिका भारतीय संविधान या किसी कानून में परिभाषित नहीं है, यह उच्चतम न्यायालय की संवैधानिक व्याख्या से व्युत्पन्न है। जनहित याचिकाओं का सबसे बड़ा योगदान यह रहा कि इसने कई तरह के नवीन अधिकारों को जन्म दिया।

सुप्रीम कोर्ट (फाइल फोटो)

अदालत इन्हें 'हस्तक्षेप करने वालों' की संज्ञा दे चुकी है और कई बार इन याचिकाओं को खारिज करने का डर भी दिखाया जा चुका है। इन जनहित याचिकाओं के कारण कुछ समस्यायें अब उत्पन्न हुई हैं।

सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालयों ने इनकी बेबुनियाद याचिकाओं पर कई बार सख्त टिप्पणी करते हुए याचिकायें खारिज करके याचिकाकर्ता पर जबरदस्त जुर्माना भी लगाया है।

सार्वजनिक हित की रक्षा के लिए किया गया कोई भी मुकदमा जनहित याचिका है। यह अन्य सामान्य अदालती मुकदमों से भिन्न है और इस में यह आवश्यक नहीं कि पीड़ित पक्ष स्वयं अदालत में जाए। यह किसी भी नागरिक द्वारा पीड़ितों के पक्ष में किया गया मुकदमा है। स्वयं न्यायालय भी किसी सूचना पर संज्ञान लेकर इसे आरम्भ कर सकता है। इस तरह के अब तक के मामलों ने कारागार और बन्दी, सशस्त्र सेना, बालश्रम, बंधुआ मजदूरी, शहरी विकास, पर्यावरण और संसाधन, ग्राहक मामले, शिक्षा, राजनीति और चुनाव, लोकनीति और जवाबदेही, मानवाधिकार और स्वयं न्यायपालिका के व्यापक क्षेत्रों को प्रभावित किया है। न्यायिक सक्रियता और जनहित याचिका का विस्तार बहुत हद तक समानान्तर रूप से हुआ है और जनहित याचिका का मध्यम-वर्ग ने सामान्यत: स्वागत और समर्थन किया है।

जनहित याचिका भारतीय संविधान या किसी कानून में परिभाषित नहीं है, यह उच्चतम न्यायालय की संवैधानिक व्याख्या से व्युत्पन्न है। जनहित याचिकाओं का सबसे बड़ा योगदान यह रहा कि इसने कई तरह के नवीन अधिकारों को जन्म दिया। उदाहरण के लिए इसने तेजी से मुकदमें की सुनवाई का अधिकार, हिरासती यातना के विरुद्ध अधिकार, दासता के विरुद्ध अधिकार, यौन-उत्पीड़न के विरुद्ध अधिकार, आश्रय एवं आवास का अधिकार, गरिमापूर्ण जीवन जीने का अधिकार, स्वच्छ पर्यावरण का अधिकार, शिक्षा का अधिकार, कानूनी सहायता प्राप्त करने का अधिकार, स्वास्थ्य सुरक्षा का अधिकार तथा ऐसे ही कई अन्य अधिकारों को अस्तित्व प्रदान किया। कुल मिलाकर इसने न्यायपालिका को काफी प्रतिष्ठा दिलायी तथा कई न्यायविदों ने न्यायपालिका के इस योगदान को पुनर्लोकतान्त्रीकरण की प्रक्रिया के रूप में देखा।

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