जनहित याचिका की आलोचना कीजिए।
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जनहित याचिका की आलोचना
Explanation:
निहित हितों की स्वार्थपूर्ति का उद्योग बनता पीआईएल
- हाल ही के एक मामले में पीआईएल को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि राजनीतिक एजेंडा वाले लोगों द्वारा जनहित याचिका (पीआईएल) का दुरुपयोग किया जा रहा है और इसकी बारंबारता न्यायिक प्रक्रिया के लिये गंभीर खतरा पैदा कर रही है।
- जनहित याचिका (जहिया), भारतीय कानून में, सार्वजनिक हित की रक्षा के लिए मुकदमे का प्रावधान है।
- अन्य सामान्य अदालती याचिकाओं से अलग, इसमें यह आवश्यक नहीं की पीड़ित पक्ष स्वयं अदालत में जाए।
- यह किसी भी नागरिक या स्वयं न्यायालय द्वारा पीडितों के पक्ष में दायर किया जा सकता है।
- जहिया के अबतक के मामलों ने बहुत व्यापक क्षेत्रों, कारागार और बन्दी, सशस्त्र सेना, बालश्रम, बंधुआ मजदूरी, शहरी विकास, पर्यावरण और संसाधन, ग्राहक मामले, शिक्षा, राजनीति और चुनाव, लोकनीति और जवाबदेही, मानवाधिकार और स्वयं न्यायपालिका को प्रभावित किया है।
- न्यायिक सक्रियता और जहिया का विस्तार बहुत हद तक समांतर रूप से हुआ है और जनहित याचिका का मध्यम-वर्ग ने सामान्यतः स्वागत और समर्थन किया है।
- यहाँ यह ध्यातव्य है कि जनहित याचिका भारतीय संविधान या किसी कानून में परिभाषित नहीं है।
- यह उच्चतम न्यायालय के संवैधानिक व्याख्या से व्युत्पन्न है, इसका कोई अंतर्राष्ट्रीय समतुल्य नहीं है और इसे एक विशिष्ट भारतीय संप्रल्य के रूप में देखा जाता है।
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