"जनम-जनम की पूंजी पाई, जग में सबै खोवायो।"
Answers
‘जनम-जनम की पूँजी पाई’ पंक्ति में मीरा ने जन्म-जन्मों की पूँजी किसे कहा है ?
उत्तर:
मीरा ने इस पंक्ति में जन्म-जन्मों की पूँजी मनुष्य देह को तथा गुरु से प्राप्त ‘राम रतन धन’ को कहा है। जीव जगत में मनुष्य शरीर ही ऐसा है जिसके माध्यम से कर्म, धन, विद्या आदि का साधन सम्भव है। इसलिए मीरा मनुष्य जन्म पाने को, अपने पिछले अनेक जन्मों का सुफल मानती है। इसके साथ ही गुरुकृपा से प्राप्त भगवान नाम का मंत्र भी कम मूल्यवान नहीं। उसी के जप से भगवत प्राप्ति हो सकती है। मानव जन्म सफल हो सकता है। यह ऐसी पूँजी है जो कभी घुटती नहीं।
Explanation:
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"जनम-जनम की पूंजी पाई, जग में सबै खोवायो।"
भावार्थ : 'पायोजी मैंने राम रतन धन पायो' नामक अपने पद में मीराबाई इस पंक्ति के माध्यम से यह कहना चाहती हैं कि उन्हें राम रतन रूपी धन पाकर यानी उन्हें भक्ति रूपी जो धन मिला है, वह उन्होंने अपने जीवन भर की पूंजी को खोकर पाया है। उन्होंने भक्ति रूपी धन को पाने के लिए जीवन में अनेक कष्ट से संघर्ष से अपनों की प्रताड़ना सही, समाज के ताने उलहाने सहे। इस तरह उन्होंने अपने जीवन भर की संचित पूंजी गवांई तब जाकर उन्हें भक्ति रूपी यह धन प्राप्त हुआ है। इस धन के आगे संसार का कोई भी धन फीका है। यह धन ऐसा धन है जो उनसे ना तो कोई छीन सकता है और ना ही कोई चोर चुरा सकता है। यह धन दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जाएगा।
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मीरा ने स्वयं को किसके प्रति सच्चा कहा?
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मीरा की कविता सहजता और समर्पण की कविता है, इस कथन को संक्षेप में समझाइये।