Social Sciences, asked by yashgehlot3701, 1 year ago

‘जननी जन्मभूमि स्वर्गादपि गरीयसी’ से क्या तात्पर्य

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Answered by shardhashardha220
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रावणके युद्धमें परास्त कर उसका वध कर , प्रभु श्री रामने माता सीताको मुक्त किए और विभीषणको लंकाकी राजगद्दीपर आसीन किए । उनके भाई लक्ष्मणने उनसे लंकामें कुछ और दिवस रुकनेके लिए कहा; क्योंकि लंका अत्यधिक रमणीय स्थान था। तब प्रभु श्री रामने कहा कि स्वर्णमयी और सुंदर लंकामें उन्हें आकृष्ट नहीं करती और उन्हें अपने जन्मभूमि वापिस जाना है; क्योंकि जननी और जन्मभूमि दोनोंका ही स्थान स्वर्गसे भी श्रेष्ठ है

Answered by ask2cj
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Answer:

"जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी", एक प्रसिद्ध संस्कृत श्लोक का अन्तिम आधा भाग है। यह नेपाल का राष्ट्रीय ध्येयवाक्य भी है। यह श्लोक वाल्मीकि रामायण के कुछ पाण्डुलिपियों में मिलता है, और दो रूपों में मिलता है।

प्रथम रूप : निम्नलिखित श्लोक 'हिन्दी प्रचार सभा मद्रास' द्वारा १९३० में सम्पादित संस्करण में आया है।[1]) इसमें भारद्वाज, राम को सम्बोधित करते हुए कहते हैं-

मित्राणि धन धान्यानि प्रजानां सम्मतानिव ।

जननी जन्म भूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी ॥

हिन्दी अनुवाद : "मित्र, धन्य, धान्य आदि का संसार में बहुत अधिक सम्मान है। (किन्तु) माता और मातृभूमि का स्थान स्वर्ग से भी ऊपर है।"

दूसरा रूप : इसमें राम, लक्ष्मण से कहते हैं-

अपि स्वर्णमयी लङ्का न मे लक्ष्मण रोचते ।

जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी ॥

अनुवाद : " लक्ष्मण! यद्यपि यह लंका सोने की बनी है, फिर भी इसमें मेरी कोई रुचि नहीं है। (क्योंकि) जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी महान हैं।

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