जननी निरखति बाल धनुहियाँ।
बार-बार उर नैननि लावति प्रभुजू की ललित पनहियाँ ।।
कबहुँ प्रथम ज्यों जाई जगावति कहि प्रिय वचन सवारे।
उठहु तात बलि मातु बदन पर, अनुज सखा सब द्वारे।।
कबहुँ कहति यों बड़ी बार भइ जाहु भूप पहँ भैया ।
बंधुबोलि जेंड्य जो भावै गई निछावरि मैया।।
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