जनसंख्या की अधिकता: सभी समस्याओं का केंद्र
*जनसंख्या में भारत की स्थिति *भारत की वर्तमान समस्याओं का उल्लेख *जनसंख्या की अधिकता और समस्याओं
का संबंध
*समस्याओं के अन्य कारणों की ओर संकेत
*निष्कर्ष
इन सभी संकेत को इस्तमाल करते हुए निबंध लिखे और सभी संकेत का अलग अलग इस्तेमाल करना है
Answers
Answer:
संदर्भ
स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर प्रधानमंत्री ने भारत में तेज़ी से बढ़ रही जनसंख्या पर चिंता व्यक्त की तथा इसको नियंत्रित करने की बात कही है। इससे कुछ समय पूर्व ही बजट सत्र में एक नामांकित संसद सदस्य द्वारा जनसंख्या को नियंत्रित करने हेतु जनसंख्या नियंत्रण विधेयक, 2019 राज्यसभा में प्रस्तुत किया। निजी विधेयक होने के कारण यह संसद में पारित तो नहीं हो सका किंतु प्रधानमंत्री के संबोधन के पश्चात् इस मुद्दे पर दोबारा चर्चा की जाने लगी है। इस विधेयक में दो बच्चों के जन्म का प्रावधान किया गया है। दो से अधिक बच्चों वाले जनप्रतिनिधि को अयोग्य निर्धारित किया जाएगा, साथ ही सरकारी कर्मचारियों को भी दो से अधिक बच्चे पैदा न करने का शपथ पत्र देना होगा। हालाँकि ऐसे कर्मचारी जिनके पहले से ही दो से अधिक बच्चे हैं उनको इस प्रावधान से छूट दी गई है। इसके अतिरिक्त नागरिकों को दो बच्चों की नीति को अपनाने हेतु प्रोत्साहित करने के लिये विभिन्न विनियमों की भी बात इस विधेयक में की गई है।
जनसंख्या नियंत्रण- तर्काधार
किसी भी देश में जब जनसंख्या विस्फोटक स्थिति में पहुँच जाती है तो संसाधनों के साथ उसकी ग़ैर-अनुपातित वृद्धि होने लगती है, इसलिये इसमें स्थिरता लाना ज़रूरी होता है। संसाधन एक बहुत महत्त्वपूर्ण घटक है। भारत में विकास की गति की अपेक्षा जनसंख्या वृद्धि दर अधिक है। संसाधनों के साथ क्षेत्रीय असंतुलन भी तेज़ी से बढ़ रहा है। दक्षिण भारत कुल प्रजनन क्षमता दर यानी प्रजनन अवस्था में एक महिला कितने बच्चों को जन्म दे सकती है, में यह दर क़रीब 2.1 है जिसे स्थिरता दर माना जाता है। लेकिन इसके विपरीत उत्तर भारत और पूर्वी भारत, जिसमें बिहार, उत्तर प्रदेश, ओडिशा जैसे राज्य हैं, इनमें कुल प्रजनन क्षमता दर चार से ज़्यादा है। यह भारत के भीतर एक क्षेत्रीय असंतुलन पैदा करता है। जब किसी भाग में विकास कम हो और जनसंख्या अधिक हो, तो ऐसे स्थान से लोग रोज़गार तथा आजीविका की तलाश में अन्य स्थानों पर प्रवास करते हैं। किंतु संसाधनों की सीमितता तथा जनसंख्या की अधिकता तनाव उत्पन्न करती है, विभिन्न क्षेत्रों में उपजा क्षेत्रवाद कहीं न कहीं संसाधनों के लिये संघर्ष से जुड़ा हुआ है।