Hindi, asked by tanmaytak3063, 1 year ago

जनतंत्र का जन्म कविता का सारांश

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Answered by shishir303
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उत्तर-

“जनतंत्र का जन्म” कविता ‘रामधारी सिंह दिनकर’ द्वारा लिखी गयी है और इस कविता में भारत की आम-जनता की भावना को व्यक्त किया गया है और जनतंत्र का महत्व बताया गया है।

इसका सारांश इस प्रकार है....

भारत की जनता जो सदियों से चुपचाप बैठी थी, अब वो जाग उठी है। इसलिये शासकों, तुम सिहांसन खाली करो, क्योंकि जनता आ रही है अपना अधिकार, अपना सिहांसने लेने, जोकि वास्तव में उसका है।  तुम शासक, सदियों तक इस भोली-भाली मासूम जनता का शोषण करते रहे और जनता चुपचाप सहन करती रही। तुमने जनता को एक खिलौने की तरह समझा, जब जाहा खेला और फिर तोड़ दिया। लेकिन याद रखो कि जब सहनशक्ति की सीमा पार हो जाती है तो यही जनता क्रुद्ध हो जाती है और सिंह की तरह गर्जना करती हुई आती है। जब जनता का अपनी नींद से जाग कर उठ ख़ड़ी होगी तो उसके प्रचण्ड आक्रोश से शासकों के सिहांसन ड़ावांडोल हो जाते हैं। अब सदियों का अंधकार मिटने वाला है। क्योंकि अब भारत की जनता जो सदियों से गुलामी के अंधकार की बेड़ियों में जकड़ी बैठी थी अब उसने वो बेड़ियों तोड़ने का संकल्प ले लिया है। आज जनता के सपनों पर स्वतत्रंता का प्रकाश फैल रहाहै। जनता के स्वप्न आज साकार होने जा रहे हैं।  भारत जगत का सबसे बडा लोकतंत्र है। यहाँ की जनता आज सिंहासन पर बैठने के लिए तैयार हैं। अब राजओं का नही प्रजा का अभिषेक होगा । भारत के अनेक कोटि जनमानस अब मुकुट धारण करेंगे। तुम मंदिरों में कौन से देवताओं को ढूंढ रहे हो। असली देवता तो कर्मयोगी हैं जो तुम्हे खेत-खलिहानों में परिश्रम करते मिलेंगें। सड़क पर गड्ढे खोदते मिलेंगे। कारखानों में अपना पसीना बहाते मिलेंगे। असली देवता तो ये परिश्रमी लोग हैं। इन परिश्रमी लोगों के औजार ही अब राष्ट्र का हथियार हैं। ये आम-जन ही शासक हैं।  इसलिये शासकों सत्ता को छोड़ दो, क्योंकि जनता अपने अपनी सत्ता संभालने आ रही है।

Answered by aroranishant799
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Answer:

"जनतंत्र का जन्म" कविता 'रामधारी सिंह दिनकर' द्वारा लिखी गई है और इस कविता में भारत के आम लोगों की भावनाओं को व्यक्त किया गया है और लोकतंत्र के महत्व को बताया गया है।

Explanation:

प्रस्तुत कविता में स्वतंत्र भारत में प्रजातंत्र के उदय का स्वर है। सदियों के बाद भारत विदेशी आधिपत्य से मुक्त हुआ है और लोकतंत्र के जीवन की स्थापना की है। आज भारत स्वर्ण मुकुट धारण कर जलवे बिखेरता है। जो मिट्टी की मूर्ति की तरह मूर्तिपूजा करता है, उसने आज अपना मुंह खोल दिया है। दर्द से तड़प रहे लोग चिल्ला रहे हैं। जनता का रवैया जहां भी जाता है, बवंडर उठने लगते हैं। आज राजा की पूजा नहीं होने वाली है। आज के देवता मंदिरों, महलों में नहीं बल्कि खेतों और खलिहानों में हैं। वस्तुतः लोकतंत्र के ऐतिहासिक और राजनीतिक निहितार्थों को उजागर करते हुए कवि एक नए भारत की आधारशिला रखता है जिसमें लोग स्वयं सिंहासन के आरोहण में हैं।

#SPJ3

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