जञानं लब्ध्वा काम् अधिगच्छति?
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श्रद्धावान लभते ज्ञानं, तत्परः सन्यतेंद्रीयः।
ज्ञानं लब्ध्वा पराम् शांति अचिरेन अधिगच्छति।।
ज्ञान प्राप्त करने की विधि के साथ कुछ शर्ते हैं,जिनके बिना ज्ञान का ग्रहण नहीं हो सकता।ज्ञानार्थी को ज्ञान दाता और ज्ञान के विषय दोनों में श्रद्धा अर्थात आदरपूर्ण विश्वास रखना होगा।श्रद्धा के अभाव में ज्ञान का बुद्धि में प्रवेश ही नहीं होगा,वह कान आँख जैसी बाहरी इन्द्रियों तक ही रहेगा और कुछ क्षणों में विलुप्त हो जायेगा।दूसरी शर्त है कि ज्ञानार्थी को ज्ञान लेने के लिए सम्यक रूप से तैयार रहना होगा।यह तयारी तन और मन दोनों के स्तर पर होनी चाहिए।कागज़ और कलम लेकर बैठे हैं किन्तु मन किसी चिंता में है तो तैयारी पूरी नहीं है।केवल तन की तैयारी है मन की नहीं।इसी प्रकार पढ़ने की इच्छा है किन्तु आलस के कारण नींद आ रही है तो समझिये कि मन की तैयारी है, तन की नहीं।तीसरी शर्त हैइन्द्रियों को संयत अर्थात नियंत्रित रखना।जिह्वा रसास्वादन में लगी है,कान मधुर संगीत सुनने में लगा है या आँख किसी सुदर वस्तु की ओर देख रहीहै तो ज्ञानलाभ कैसे होगा। इस प्रकार तीन शर्तें तो किसी भी प्रकार के ज्ञान की प्राप्ति में लागू होंगी।आध्यात्मिक ज्ञान का फल बताते हुए गीतकार कहते हैं कि साधक को ज्ञान प्राप्त होते ही बिना विलम्ब के परम शांति की भी उपलब्धि होगी।
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