jansanchar ke Madhyam kya kya hai Parichay
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✩✯जनसंचार माध्यमों के वर्तमान प्रचलित रूपों में प्रमुख हैं- समाचारपत्र-पत्रिकाएँ, रेडियो, टेलीविज़न, सिनेमा और इंटरनेट। इन माध्यमों के ज़रिये जो भी सामग्री आज जनता तक पहुँच रही है, राष्ट्र के मानस का निर्माण करने में उसकी महत्त्वपूर्ण भूमिका है।
समाचारपत्र-पत्रिकाएँ :
✰जनसंचार की सबसे मज़बूत कड़ी पत्र-पत्रिकाएँ या प्रिंट मीडिया ही है। हालाँकि अपने विशाल दर्शक वर्ग और तीव्रता के कारण रेडियो और टेलीविज़न की ताकत ज़्यादा मानी जा सकती है लेकिन वाणी को शब्दों के रूप में रिकार्ड करने वाला आरंभिक माध्यम होने की वजह से प्रिंट मीडिया का महत्त्व हमेशा बना रहेगा। आज भले ही प्रिंट, रेडियो, टेलीविज़न या इंटरनेट, किसी भी माध्यम से खबरों के संचार को पत्रकारिता कहा जाता हो, लेकिन आरंभ में केवल प्रिंट माध्यमों के ज़रिये खबरों के आदान-प्रदान को ही पत्रकारिता कहा जाता है। इसके तीन पहलू हैं-पहला समाचारों को संकलित करना, दूसरा उन्हें संपादित कर छपने लायक बनाना और तीसरा पत्र या पत्रिका के रूप में छापकर पाठक तक पहुँचाना। हालाँकि तीनों ही काम आपस में गहरे जुड़े हैं लेकिन पत्रकारिता के तहत हम पहले दो कामों को ही लेते हैं क्योंकि प्रकाशन और वितरण का कार्य तकनीकी और प्रबंधकीय विभागों के अधीन होते हैं जबकि रिपोर्टिंग और संपादन के काम के लिए एक विशेष बौद्धिक और पत्रकारीय कौशल की अपेक्षा होती है।
जहाँ बाहर से खबरे लाने का काम संवाददाताओं का होता है, वहीं तमाम खबरों, लेखों, फ़ीचरों को व्यवस्थित तरीके से संपादित करने और सुरुचिपूर्ण ढंग से छापने का काम संपादकीय विभाग में काम करनेवाले संपादकों का होता है।
हालाँकि दुनिया में अखबारी पत्रकारिता को अस्तित्व में आए 400 साल हो गए हैं, लेकिन भारत में इसकी शुरुआत सन् 1780 में जेम्स ऑगस्ट हिकी के ‘बंगाल गज़ट’ से हुई जो कलकत्ता (कोलकाता) से निकला था जबकि हिंदी का पहला साप्ताहिक पत्र ‘उदंत मार्तंड’ भी कलकत्ता से ही सन् 1826 में पंडित जुगल किशोर शुक्ल के संपादन में निकला था। आजादी के बाद अधिकतर पुरानी पत्रिकाएँ बंद हो गईं और कई नए समाचारपत्रों और पत्रिकाओं का प्रकाशन शुरू हुआ।