Hindi, asked by DeveshJabrolia, 8 months ago

जर्नल रोज की सेना ने पेशवा की सेना को कहाँ पर हराया?​

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Answered by ankitakurai
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ऐसे में आपके मन में भी जिज्ञासा होगी कि महज 19-20 साल की उम्र में पूरी मराठा सेना की कमान संभालने वाला लड़का हर 6 महीने में जंग लड़ता रहा और 39 साल की उम्र तक 40 युद्धों में वो एक भी नहीं हारा तो वजह क्या थी? उनकी खास तकनीक जिसे पश्चिमी वॉरफेयर एक्सपर्ट्स ‘ब्लिट्जक्रिग (Blitzkrieg)’ यानी बिजली की गति से तूफानी हमला करना कहते है

बाजीराव ने कभी भी युद्ध में डिफेंस के सिद्धांत को नहीं माना वो आक्रमण करने को ही जीत का आधार मानते थे. आप एक-दो उदाहरणों से इसे समझ सकते हैं. ये 1727 की बात है ‘पेड़ को काटने से शाखाएं कटती हैं जड़ें नहीं, मुझे जड़ काटनी है.’

दिल्ली पर भी बाजीराव ने इसी तरह हमला किया था, उन्होंने 12 नवंबर 1736 को पुणे से दिल्ली जाने के लिए मार्च शुरू किया. मुगल बादशाह ने आगरा के गर्वनर सआदत खां को निपटने का जिम्मा सौंपा. मल्हार राव होल्कर और पिलाजी जाधव की सेना यमुना पार करके दोआब में आ गई. सआदत खां मराठों से खौफ में था, उसने डेढ़ लाख की सेना जुटा ली. मराठों के पास तो कभी भी एक मोर्चे पर इतनी सेना नहीं रही थी लेकिन उनकी रणनीति बहुत दिलचस्प थी. इधर मल्हार राव होल्कर ने रणनीति पर अमल किया और मैदान छोड़ दिया. इसके बाद सआदत खां ने डींगें मारते हुआ अपनी जीत का सारा विवरण मुगल बादशाह तक पहुंचा दिया और खुद मथुरा की तरफ चला गया.

बाजीराव को पता था कि इतिहास उनके बारे में क्या लिखेगा इसीलिए उन्होंने सआदत खां और मुगल दरबार को सबक सिखाने की सोची. उस वक्त देश में कोई भी ऐसी ताकत नहीं थी जो सीधे दिल्ली पर आक्रमण करने का ख्याल भी दिल में ला सके. उस वक्त मुगलों और खासकर दिल्ली दरबार का खौफ सबके सिर चढ़ कर बोलता था लेकिन बाजीराव को पता था कि ये खौफ तभी हटेगा जब मुगलों की जड़ यानी दिल्ली पर हमला होगा. सारी मुगल सेना आगरा, मथुरा में अटक गई और बाजीराव दिल्ली तक आ गए. आज जहां तालकटोरा स्टेडियम है, वहां बाजीराव ने डेरा डाल दिया. हमला करने के लिए बाजीराव ने दस दिन की दूरी 48 घंटे में पूरी की वो भी बिना रुके और बिना थके. देश के इतिहास में अब तक दो आक्रमण ही सबसे तेज माने गए हैं. एक अकबर का गुजरात के विद्रोह को दबाने के लिए नौ दिन के अंदर फतेहपुर से वापस गुजरात जाकर हमला करना और दूसरा बाजीराव का दिल्ली पर हमला करना.

बाजीराव ने तालकटोरा में अपनी सेना का कैंप डाल दिया. मुगल बादशाह मोहम्मद शाह रंगीला बाजीराव को लाल किले के इतना करीब देखकर घबरा गया कि उसने खुद को लाल किले के सुरक्षित इलाके में कैद कर लिया और मीर हसन कोका व आमिर खान की अगुआई में आठ से दस हजार सैनिकों की टोली बाजीराव से निपटने के लिए भेज दिया. बाजीराव के लड़ाकों ने उस सेना को बुरी तरह शिकस्त दी. मराठा ताकत के लिए 28 मार्च 1737 का दिन सबसे बड़ा दिन था. कितना आसान था बाजीराव के लिए लाल किले में घुसकर दिल्ली पर कब्जा कर लेना लेकिन बाजीराव की जान तो पुणे में बसती थी, महाराष्ट्र में बसती थी.

वो तीन दिन तक वहीं रुके. एक बार तो मुगल बादशाह ने योजना बना ली कि लाल किले के गुप्त रास्ते से भागकर अवध चला जाए लेकिन बाजीराव बस मुगलों को अपनी ताकत का अहसास दिलाना चाहता थे. वो तीन दिन तक वहीं डेरा डाले रहे. पूरी दिल्ली उस वक्त एक तरह से मराठों के रहमोकरम पर थी, उसके बाद बाजीराव वापस लौट गए. बुरी तरह बेइज्जत हुए मुगल बादशाह रंगीला ने निजाम से मदद मांगी. निजाम मुगल पुराना वफादार था, वो मुगल हुकूमत की इज्जत को बिखरते हुए नहीं देख सका. फिर निजाम दक्कन से निकल पड़ा. इधर से बाजीराव और उधर से निजाम दोनों एमपी के सिरोंजी में मिले लेकिन कई बार बाजीराव से पिट चुके निजाम ने उसको केवल इतना बताया कि मुगल बादशाह से मिलने जा रहा है.

फिर निजाम दिल्ली आया और कई मुगल सिपहसालारों ने हाथ मिलाया. उन सभी ने बाजीराव को बेइज्जती करने का दंड देने का संकल्प लिया और कूच कर दिया. लेकिन बाजीराव से बड़ा कोई दूरदर्शी योद्धा उस काल खंड में कोई दूसरा पैदा नहीं हुआ था. ये बात साबित भी हुई क्योंकि बाजीराव खतरा भांप चुके थे. अपने भाई चिमना जी अप्पा के साथ दस हजार सैनिकों को दक्कन की सुरक्षा का भार देकर वो अस्सी हजार सैनिकों के साथ फिर दिल्ली के लिए निकल पड़े. इस बार मुगलों को निर्णायक युद्ध में हराने का इरादा था ताकि फिर सिर ना उठा सकें.

दिल्ली से निजाम के अगुआई में मुगलों की विशाल सेना और दक्कन से बाजीराव की अगुआई में मराठा सेना निकल पड़ी. दोनों सेनाएं भोपाल में मिलीं. 24 दिसंबर 1737 का दिन मराठा सेना ने मुगलों को जबरदस्त तरीके से हराया. निजाम की समस्या ये थी कि वो अपनी जान बचाने के चक्कर में जल्द संधि करने के लिए तैयार हो जाता था. इस बार 7 जनवरी 1738 को ये संधि दोराहा में हुई. मालवा मराठों को सौंप दिया गया और मुगलों ने पचास लाख रुपये बतौर हर्जाना बाजीराव को सौंपे. चूंकि निजाम हर बार संधि तोड़ता था सो बाजीराव ने इस बार निजाम को मजबूर किया कि वो कुरान की कसम खाकर संधि की शर्तें दोहराए. ये मुगलों की अब तक की सबसे बड़ी हार थी और मराठों की सबसे बड़ी जीत.

ब्लिट्जक्रिग (Blitzkrieg) तकनीक क्या है

ब्लिट्जक्रिग तकनीक के तहत दुश्मन की सेना के केवल एक भाग पर फोकस किया जाता था. पूरी ताकत उसी भाग पर अटैक करने पर लगाई जाती थी. दुश्मन ये अनुमान नहीं लगा पाता था कि हमला कहां से होगा और इसीलिए खौफ में रहता था. बाद में हिटलर ने इस तकनीक से कई युद्ध जीते, इजराइल भी

द्वितीय विश्वयुद्ध में ब्रिटिश आर्मी के कमांडर रहे मशहूर सेनापति जनरल मांटगोमरी ने भी अपनी किताब ‘हिस्ट्री ऑफ वॉरफेयर’ में बाजीराव की बिजली की गति से तेज आक्रमण शैली की जमकर तारीफ की और लिखा कि बाजीराव कभी हारा नहीं. आज वो किताब ब्रिटेन में डिफेंस स्टडीज के कोर्स में पढ़ाई जाती है.

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