जसोदा हरि पालने झुलावै | हलरावै, दुलरावै, मल्हावै जोई सोई कछु गावै | इस पद्य में रस का 'आश्रय' कौन है
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जसोदा हरि पालनैं झुलावै। वात्सल्य रस का स्थायी भाव वात्सल्यता होता है
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