जटाटवीगलज्जल प्रवाहपाववतस्थले
गलेऽवलम्ब्य लम्म्बिताां भ
ु
जांगतुांगमाललकाम।
डमड्डमड्डमड्डमनििादवड्डमववयां
चकार चांडताांडवां तिोतु
िः लिवः लिवम ॥1॥
जटा कटा हसांभ्रम भ्रमम्निललांपनिर्वरी ।
ववलोलवी चचवल्लरी ववराजमािम
ू
र्वनि ।
र्गद्र्गद्र् गज्ज्वलल्ललाट पट्टपावके
ककिोरचांद्रिेखरे रनतः प्रनतक्षणां ममां ॥2॥
र्रा र्रेंद्र िांददिी ववलास िांर्
ु
वांर्
ुर-
स्फ
ुरदृगांत सांतनत प्रमोद मािमािसे ।
क
ृ
पाकटा क्षर्ारणी निरुद्र्दर्
ु
वरापदद
कवचचद्ववगम्बिरे मिो वविोदमेतु
वस्तु
नि ॥3॥
जटा भ
ु
जां गवपगां ल स्फ
ुरत्फणामणणप्रभा-
कदांिकांु
क
ु
म द्रवप्रललप्त ददग्वर्
ू
म
ु
खे ।
मदाांर् लसर्ां ुरस्फ
ुरत्वग
ु
त्तरीयमेदरुे
मिो वविोदद्भ
ुतां बिभां तु
व भ
ूतभतवरर ॥4॥
सहस्र लोचि प्रभत्ृय िेषलेखिेखर-
प्रसू
ि र्
ू
ललर्ोरणी ववर्
ूसराांनिपीठभ
ू
ः ।
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