jati pratha ko hi shram vibhajan ka ek roop na manne ke piche kya tark hai likhiye
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जाति प्रथा को श्रम-विभाजन का ही एक रूप न मानने के पीछे आंबेडकर के निम्न तर्क हैं । विभाजन अस्वाभाविक है।
1. श्रम-विभाजन मनुष्य की रुचि पर आधारित नहीं है।
2. व्यक्ति की क्षमताओं की उपेक्षा की जाती है।
3. व्यक्ति के जन्म से पहले ही उसका पेशा निर्धारित कर दिया जाता है। उसे पेशा चुनने की आज़ादी नहीं होती।
4. व्यक्ति को अपना व्यवसाय बदलने की अनुमति नहीं देती।
5. संकट में भी व्यवसाय बदलने की अनुमति नहीं होती जिससे कभी-कभी भूखों मरने की नौबत भी आ जाती है।
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