जड़ चेतन गुन दोषमय बिस्व कीन्ह करतार |
संत हंस गुन गहहिं पय परिहरि बारि बिकार ||
[ भाव अर्थ लिखीऐ ]
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सरलार्थ :- विधाता ने इस जड़ - चेतन विश्व को गुण - दोषमय रचा है, किन्तु संत रूपी हंस दोष रूपी जल को छोड़कर गुण रूपी दूध को ही ग्रहण करते हैं।
आशा है कि यह उत्तर आपकी सहायता करेगा ।
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