जवाब दो, उमा । (गोपाल से) हैं-हैं, जरा शरमाती है। इनाम
तो इसने-
गो. प्रसाद (जरा रूखी आवाज मा जरा इसे भी तो मुंह खोलना चाहिए।
रामस्वरूप : उमा, देखो, आप क्या कह रहे हैं। जवाब दोन।
(हल्की लेकिन मजबूत आवाज में) क्या जवाब ढूंदाबू जी!
जब कुर्सी-मेज दिकती है तब टुकानदार कुर्सी-मेज से कुछ
नहीं पूछता सिर्फ खरीददार को दिखला देता है । पसंद आ गई
तो अच्छा है, वरना-
रामस्वरूप : (चौककर खड़े हो जाते हैं।) उमा, उमा !
उमा
अब मुझे कह लेने दीजिए बाब जी।
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इसमें प्रश्न कहा है यह एकांकी है इसका नाम रीड़ की हड्डी है
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akruti purna kijiye uma ne pitaji ko khudko
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