jay shankar prasad ka jeevan in hindi
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जयशंकर प्रसाद का जन्म माघ शुक्ल दशमी, संवत् १९४६ वि॰ (तदनुसार ३० जनवरी 1890 ई॰ दिन-गुरुवार) को काशी के गोवर्धनसराय में हुआ। इनके पितामह बाबू शिवरतन साहू दान देने में प्रसिद्ध थे और इनके पिता बाबू देवीप्रसाद जी भी दान देने के साथ-साथ कलाकारों का आदर करने के लिये विख्यात थे।
जयशंकर प्रसाद का जन्म सन् 1889 ई. में वाराणसी के प्रसिद्ध 'सुँघनी साहू' परिवार में हुआ था। इनके पूर्वज जौनपुर आकर बस गये थे। वहाँ पर उन्होंने तम्बाकू का व्यापार करना प्रारम्भ कर दिया। प्रसाद जी के पिता का नाम देवी प्रसाद था। इनके पिता के यहाँ बहुत से कवि और विद्वान् आते रहते थे। अत: साहित्यिक चर्चा का प्रभाव बालक प्रसाद पर पर्याप्त मात्रा में पड़ा। फलतः नौ वर्ष की आयु में कविता करना प्रारम्भ कर दिया।
प्रसाद जी का पारिवारिक जीवन सुखी नहीं था। बचपन में ही इनके माता-पिता का देहान्त हो गया। दुर्भाग्य से सत्रह वर्ष की आयु में इनके बड़े भाई का देहान्त हो गया इस कारण इनकी स्कूली शिक्षा अधिक न हो सकी। क्वीन्स कॉलेज से आठवीं कक्षा तक की शिक्षा प्राप्त की तत्पश्चात् घर पर ही इन्होंने हिन्दी, संस्कृत, फारसी और अंग्रेजी की शिक्षा प्राप्त की इन्होंने वेद, पुराण, इतिहास, साहित्य और दर्शनशास्त्र आदि का स्वाध्याय से ही सम्यक् ज्ञान प्राप्त किया।
असमय में माता-पिता, बड़े भाई की मृत्यु के कारण परिवार का सारा बोझ इनके कन्धों पर आ गया। इनका परिवार जो पहले वैभव के पालने में झूलता था, वह ऋण के बोझ से दब गया। इसी बीच इनकी पत्नी का देहावसान हो गया। अत: इनको जीवन भर विषम परिस्थितियों से संघर्ष करना पड़ा किन्तु फिर भी साहित्य साधना से मुख नहीं मोड़ा। चिन्ताओं ने शरीर को जर्जर कर दिया और ये अन्ततः क्षय रोग के शिकार हो गये। माँ भारती का यह अमर गायक जीवन के केवल 48 बसन्त देखकर 15 नवम्बर, सन् 1937 को परलोकवासी हो गया।
जयशंकर प्रसाद का साहित्यिक परिचय
जयशंकर प्रसाद हिन्दी साहित्याकाश के उज्ज्वल नक्षत्र हैं। वह कुशल साहित्यकार और बहुमुखी प्रतिभा वाले व्यक्ति थे। उनकी पारस रूपी लेखनी का साहित्य की जिस विधा से भी स्पर्श हो गया वही कंचन बन गयी। वे जितने श्रेष्ठ कवि हैं, उतने ही महान गद्यकार हैं। गद्यकार के रूप में प्रसाद जी ने नाटक उपन्यास, कहानी और निबन्ध सभी लिखे हैं। कवि के रूप में इन्होंने महाकाव्य, खण्डकाव्य आदि की रचना की है। छायावादी काव्य के तो आप जनक हैं। संक्षेप में प्रसाद जी सच्चे अर्थो में हिन्दी साहित्य जगत के अक्षय प्रासाद है।
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