'जय जवान, जय किसान नारे पर अपने विचार कक्षा में प्रस्तुत करो।
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Explanation:
सन् १९६५ की बात है । उत्तर-पश्चिम सीमा पर स्थित पड़ोसी राष्ट्र पाकिस्तान ने हमारे देश पर चढ़ाई कर दी । उस समय लाल बहादुर शास्त्री हमोर देश के प्रधानमंत्री थे । नाटा कद और दुबला-पतला शरीर था उनका ।
भारतीय रक्त के प्यासे पाकिस्तानी सैनिकों ने समझा था कि उन्हें लीलने में देर न लगेगी, किंतु वे तो लोहे के चने निकले । उनकी नस-नस में देश-प्रेम भरा हुआ था । अपने देश पर आए मंकट की भीषणता का अनुभव कर उनके देश-प्रेम में उबाल आ गया ।
वे साहस के पुतले वन गए अपने उस छोटे शरीर से उन्होंने सिंह की-सी गर्जना की और पाकिस्तानी सैनिकों को ललकारा । ऐसे संकट काल में राष्ट्रीय एकता को सुदृढ़ करने की आवश्यकना थी । देश के किसी कोने में कोई नया उपद्रव न खड़ा हो जाए, इस पर ध्यान रखना आवश्यक था । इन प्राथमिकताओं को शास्त्रीजी ने महसूस किया ।
देश में भावनात्मक एकता स्थापित करने के लिए उन्होंने नारा लगाया- ‘जय जवान, जय किसान ।’ इस नारे ने जादू का सा असर किया भारतीय सैनिकों पर । इसका इतना गहरा प्रभाव पड़ा कि उन्होंने अपनी जान की परवाह न कर पाकिस्तानी सैनिकों के दाँत खट्टे कर दिए और उनके गर्व को मिट्टी में मिला दिया ।
Answer:
‘जय जवान जय किसान’ इस नारे में छिपा हुआ है हमारे देश भारत का विकास और उसकी उन्नति का रहस्य यह नारा सन् 1965 में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री लालबहादुर शास्त्री ने उस समय दिया था, जब हमारे देश की अर्थव्यवस्था लड़खड़ाई हुई थी और पड़ोसी देश पाकिस्तान हमें खंडित करने की हर तरह से कोशिश कर रहा था लेकिन उसे भारत की ‘शांति’ में छिपी उस प्रचंड अग्नि का अंदाजा नहीं था, जो दुश्मन को जलाकर राख कर देती है। उसे अपने हथियारों पर गर्व था। उसे लगता था कि वह आधुनिक हथियारों का प्रयोग करके भारत पर विजय प्राप्त कर लेगा, लेकिन भारतीय सैनिकों की बहादुरी के सामने सब कुछ धरा रह गया। यह इस नारे का ही असर था कि भारतीय सैनिकों ने दुश्मन को हारने के लिए विवश कर दिया। उसे संधि प्रस्ताव पेश करना पड़ा।
यहां शास्त्री जी के व्यक्तित्व के आकलन से संबंधित एक घटना का जिक्र करना जरूरी है। कहते हैं कि सन् 1964 में राष्ट्रमंडल की बैठकों में भाग लेने के लिए लंदन जाते समय रास्ते में ईंधन भरवाने इनके जहाज को कराची उतरना पड़ा। वहां उनकी अगवानी करने आए पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान ने अपने साथी से व्यंग करते हुए पूछा कि क्या यही है जवाहर लाल नेहरू का वारिस?’ अयूब खान को बाद में महसूस हुआ कि उसने छोटे कद-काठी में छिपे एक देशभक्त वीर योद्धा को समझने में भूल की थी।
लालबहादुर शास्त्री ने जिस समय यह नारा दिया, उस समय देश आर्थिक तंगी का भी सामना कर रहा था। इस तरह किसानों के मनोबल को बढ़ाने वाले इस नारे ने देश के उन दो वर्गों के मनोबल को ऊर्जा दी, जिन पर देश की आर्थिक उन्नति, विकास और सुरक्षा टिकी हुई है। इसीलिए इसे कुछ लोग ऐसा दिशाक्षर मंत्र मानते हैं, जो देश को हर तरह से समृद्ध बनाने वाला है