Hindi, asked by vickysinghjatt61, 6 months ago

'जय-जय भैरवि असुर भयाउनि' शीर्षक कविता का सारांश लिखें​

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Answered by shishir303
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‘जय-जय भैरवि असुर भयाउनि’ कविता का सारांश...

‘जय जय भैरवि असुर भयाउनि’ कविता कवि ‘विद्यापति’ द्वारा रचित कविता है। इस कविता के माध्यम से कवि ने माँ जगदंबा के विभिन्न रूपों का गुणगान किया है। वह इस कविता के माध्यम माँ जगदंबा की वंदना करते हुए कहते हैं कि हे माँ! असुरों के लिए तो आप भयानक और काल का रूप हैं, परंतु अपने पति शिव की प्रेयसी हैं यानी आप जहाँ अत्याचारियों के लिए आप काल के समान है तो वही प्रेम और दया की मूर्ति भी हैं। जहाँ आपका एक पैर दिन-रात शवों के ऊपर रहता है, वहीं दूसरी तरफ आपके माथे पर चंदन का मंगल टीका भी सुशोभित है, जो मंगल का प्रतीक है।

हे माँ भगवती! आपके विभिन्न रूपों का इतना अच्छा वर्णन शायद ही कहीं मिले। जहाँ आपका एक रूप सौम्य है, तो दूसरा रूप विकराल। आपके कमर पर घुंधरू की घन-घन प्रतिध्वनि बज रही है, तो हाथ में खड़ग है। इस तरह आप के अनेक रूप हैं। आप वीरता और शौर्य का प्रतीक है, तो प्रेम और दया की साक्षात मूर्ति का भी प्रतीक हैं।

इस कविता में कवि ने  माता का गुणवान वीर रस और श्रंगार रस दोनों रसों में किया है

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