जय - जय , जय - जय भारत जननी , वदन तुम स्वीकारो माँ उच्च हिमालय शुभ्र मुकुट है , गंगा - यमुना हार नवला गोदा - कृष्णा - कावेरी भी , प्यार लुटाती हैं अविरल । चरण पकड़ सागर गुण गाता , गायन यह स्वीकारो माँ जय - जय , जय - जय भारत जननी , वंदन तुम स्वीकारो माँ ! हर खेत - खलिहान , घने वन , दिशा - दिशा में दीप जले । निशि - दिन कर्म - निस्त जन - जीवन , कर्मो से ही भाग्य फले । यही कर्म हैं तेरी पूजा . पूजन यह स्वीकारो माँ जय - जय , जय - जय , भारत जननी , वंदन तुम स्वीकारो माँ तुच्छ स्वार्थ से ऊपर उठकर , नित नव मंगल - कार्य करें । मिल - जुलकर हम रहें प्रेम से . भेदभाव सब दूर करें । तन - मन - धन सब तुमको अर्पण , अर्पण यह स्वीकारो माँ ! जय - जय , जय - जय , भारत जननी , वंदन तुम स्वीकारो माँ
is kavita ka arth bataiye
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