जय पै जु होइ अधिकार तो बिचार कीजै
लोक-लाज, भलो-बुरो, भले निरधारिए।
नन, श्रीन, कर, पग, सबै पर-बस भए
उतै चलि जात इन्हें कैसे के सम्हारिए।
'हरिचंद' भई सब भाँति सों पराई हम
इन्हें ज्ञान कहि कहो कैसे कै निबारिए।
मन में रहै जो ताहि दीजिए बिसारि, मन
आपै बस जामैं ताहि कैसे के बिसारिए।
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जय पै जु होइ अधिकार तो बिचार कीजै
लोक-लाज, भलो-बुरो, भले निरधारिए।
नन, श्रीन, कर, पग, सबै पर-बस भए
उतै चलि जात इन्हें कैसे के सम्हारिए।
'हरिचंद' भई सब भाँति सों पराई
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