Jayaprakash Narayan said, “ True politics is about promotion of human happiness.” My opinion on this is..
abaliga99:
True politics is about promotion of human happiness.”
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लोक नायक जया प्रकाश
नारायण पढ़ाई में काफी तेज थे। वे विद्वान भी
थे। उन्हों ने अनेक राजनीतियों के बारे में पढ़ा। उन्हों ने अमेरिका में अर्थशास्त्र
और राजनीति शस्त्र पढ़ा। उनके ऊपर कम्यूनिस्म
(साम्यवाद), सोशलिस्म (समाजवाद), हिन्दू आचार और आदर्श, राजपूतों के साहस के कथाएँ, भगवद गीता, गांधीजी और अन्य स्वतंत्र योद्धाओं का बहुत असर पड़ा। उनहों ने मेहनत और जनता की खुशी में दिल लगाया। उन्हों
ने समाजसेवा की।
जेपी ने यह कहावत तब कही थी जब हिंदुस्तान
में राजनीति की स्थिति खराब थी, भ्रष्टाचार, बढ्गया था। लोगों में अशांति फैली थी।
राजनीति का मतलब है लोगों पर राज चलाने का शस्त्र का अभ्यास और अनुकरण। लोगों के जीवन बदलने की ओर कदम बढ़ाना। राजनीति में पहले कुर्सी पाना होता है और उसके बाद अपने अधकार से लोगों की भलाई करना होता है। अचची राजनीति है अधिकार का सकरम इंस्तेमाल करना। राजनीति में लोगों के भलाई और आवश्यकताएं के बारे में जानें, उनको पूरे करने के लिए प्रणाली विस्तृत रूप से करें। राजनीति व्यवस्था इन्हें सम्पूर्ण तरह से क्रियाचित करें।
लोगों की खुशी उनके स्वस्थ्य, मत, धन, संपत्ति, शादी, पारिवारिक जीवन, सामाजिक जीवन शैली, नौकरी में तृप्ति, और जीवन का स्तर इत्यादि पर निर्भर होती है । लोग अगर स्वस्थ होंगे तो फिर खुश रहेंगे। जो अपने मत (धर्म) पालन करते है, वे भी खुश रहते हैं । जिनके पास बोलने का स्वतंत्र हो वे अवतंत्र जन से ज्यादा खुश रहते हैं। आशावादी और आत्मा सम्मान करनेवाले खुश रहते हैं।
एक राष्ट्रिय स्तर पर आर्थिक स्थिति और विकास लोगों की खुशी ला सकता है। आधुनिकता, राजनैतिक स्थिरता, अपराधों की संख्या में घाट, राजनैतिक हक, आर्थिक असमानता में घाट, विद्या और स्वस्थ्य संबंधी सेवाओं की उपलभ्दी, बेरोजगारी में घाट, स्त्रियॉं पर अत्याचार में घाट, ये सब एक समाज में लोगों की खुशी के कारण होते हैं।
लोक्तंत्र या कोई दूसरी राजनीति को ऊपर बताए गए सब गुणनखंड के समर्थन और आचरण करके लोगों में शांति और आनंद लाना चाहिए। राजनीति एक नियंत (तानाशाही) जैसा नहीं हो जिसमें सिर्फ अधिकारियों की खातिरदारी होती है। लोगों के के खुशियों के गुणनखंड और हक को नहीं काटना चाहिए।
लोग हजारों साल पहले भी जीते थे। वे अपने मर्जी के मालिक थे। उनके बाद राजा और राज्य पालन की प्रथा शुरू हुई। यह आगे चला इसलिए कि इस में लोगों की रक्षा और खुशी की खातिरदारी और बढ़ावा होना का वादा था। बाद में अब लोकतन्त्र या समाजवाद या साम्यवाद जैसे विविध नीति बने। अगर ये नीति मनुष्य को आनंद नहीं दे सकते , फिर समाज वासियों को वह राजनीति की जरूरत नहीं होती है। वे समाज से बाहर हो कर, पुराने तरीके में हर एक अपने अपने मन पसंद जीवन बिता सकते हैं। वही बेहतर होगा न। तो फिर हजारों सालों का हमारे समाज में हुए उन्नति विकास बदलाव सब बेकार हैं । इस लिए जो भी राजनीति अपने देश में करेंगे, उनसे लोगों के आनंद में वृद्धि लाएँ। अगर नहीं तो फिर वे सच्ची राजनीति है नहीं । उसके ऊपर से लोगों के मन में अशांत फाइल सकता है।
राजनीति का मतलब है लोगों पर राज चलाने का शस्त्र का अभ्यास और अनुकरण। लोगों के जीवन बदलने की ओर कदम बढ़ाना। राजनीति में पहले कुर्सी पाना होता है और उसके बाद अपने अधकार से लोगों की भलाई करना होता है। अचची राजनीति है अधिकार का सकरम इंस्तेमाल करना। राजनीति में लोगों के भलाई और आवश्यकताएं के बारे में जानें, उनको पूरे करने के लिए प्रणाली विस्तृत रूप से करें। राजनीति व्यवस्था इन्हें सम्पूर्ण तरह से क्रियाचित करें।
लोगों की खुशी उनके स्वस्थ्य, मत, धन, संपत्ति, शादी, पारिवारिक जीवन, सामाजिक जीवन शैली, नौकरी में तृप्ति, और जीवन का स्तर इत्यादि पर निर्भर होती है । लोग अगर स्वस्थ होंगे तो फिर खुश रहेंगे। जो अपने मत (धर्म) पालन करते है, वे भी खुश रहते हैं । जिनके पास बोलने का स्वतंत्र हो वे अवतंत्र जन से ज्यादा खुश रहते हैं। आशावादी और आत्मा सम्मान करनेवाले खुश रहते हैं।
एक राष्ट्रिय स्तर पर आर्थिक स्थिति और विकास लोगों की खुशी ला सकता है। आधुनिकता, राजनैतिक स्थिरता, अपराधों की संख्या में घाट, राजनैतिक हक, आर्थिक असमानता में घाट, विद्या और स्वस्थ्य संबंधी सेवाओं की उपलभ्दी, बेरोजगारी में घाट, स्त्रियॉं पर अत्याचार में घाट, ये सब एक समाज में लोगों की खुशी के कारण होते हैं।
लोक्तंत्र या कोई दूसरी राजनीति को ऊपर बताए गए सब गुणनखंड के समर्थन और आचरण करके लोगों में शांति और आनंद लाना चाहिए। राजनीति एक नियंत (तानाशाही) जैसा नहीं हो जिसमें सिर्फ अधिकारियों की खातिरदारी होती है। लोगों के के खुशियों के गुणनखंड और हक को नहीं काटना चाहिए।
लोग हजारों साल पहले भी जीते थे। वे अपने मर्जी के मालिक थे। उनके बाद राजा और राज्य पालन की प्रथा शुरू हुई। यह आगे चला इसलिए कि इस में लोगों की रक्षा और खुशी की खातिरदारी और बढ़ावा होना का वादा था। बाद में अब लोकतन्त्र या समाजवाद या साम्यवाद जैसे विविध नीति बने। अगर ये नीति मनुष्य को आनंद नहीं दे सकते , फिर समाज वासियों को वह राजनीति की जरूरत नहीं होती है। वे समाज से बाहर हो कर, पुराने तरीके में हर एक अपने अपने मन पसंद जीवन बिता सकते हैं। वही बेहतर होगा न। तो फिर हजारों सालों का हमारे समाज में हुए उन्नति विकास बदलाव सब बेकार हैं । इस लिए जो भी राजनीति अपने देश में करेंगे, उनसे लोगों के आनंद में वृद्धि लाएँ। अगर नहीं तो फिर वे सच्ची राजनीति है नहीं । उसके ऊपर से लोगों के मन में अशांत फाइल सकता है।
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