Hindi, asked by vikashkumar620109512, 5 hours ago

जयशंकर प्रसाद म रश्मि का आना/रंगिणि तूने कैसे पहचाना' पंक्ति किस कवि की है ? सुमित्रानन्दन पंत दिनकर निराला जयशंकर प्रसाद​

Answers

Answered by shaikhshifaa8969
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Answer:

सुमित्रानंदन पंत का जन्म कौसानी, जिला अल्मोडा में हुआ। उच्च शिक्षा के निमित्त पहले काशी और फिर प्रयाग गए, किन्तु शीघ्र ही कॉलेज छोड दिया और घर पर ही हिंदी, बंगला, संस्कृत तथा अंग्रेजी का अध्ययन किया। बाद में प्रयाग आकर बसे, किन्तु अल्मोडा के रम्य प्राकृतिक सौंदर्य की छाप हृदय पर सदा बनी रही। पंत के लगभग 35 काव्य-संग्रह हैं, जिनमें 'उच्छ्वास, 'ग्रंथि, 'वीणा, 'पल्लव, 'गुंजन, 'ग्राम्या, 'स्वर्ण-किरण, 'पल्लविनी, 'चिदम्बरा एवं 'लोकायतन मुख्य हैं। 'अंतिमा काव्य रूपक है। इन्होंने कविता को भाव एवं भाषा सामर्थ्य तथा नई छंद सृष्टि का उपहार दिया। इन्हें प्रकृति का सुकुमार कवि कहते हैं। गद्य के क्षेत्र में इन्होंने नाटक, उपन्यास, कहानी तथा आत्मकथा लिखी है। ये साहित्य अकादमी पुरस्कार तथा भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित हुए। इन्हें 'पद्मभूषण अलंकरण से विभूषित किया गया

Explanation:

शांत स्निग्ध, ज्योत्स्ना उज्ज्वल!

अपलक अनंत, नीरव भू-तल!

सैकत-शय्या पर दुग्ध-धवल, तन्वंगी गंगा, ग्रीष्म-विरल,

लेटी है श्रांत, क्लांत, निश्चल!

तापस-बाला गंगा निर्मल, शशि-मुख से दीपित मृदु करतल,

लहरें सर पर कोमल कुंतल।

गोरे अंगों पर सिहर-सिहर, लहराता तार-तरल सुंदर,

चंचल अंचल-सा नीलाम्बर!

साडी की सिकुडन-सी जिस पर, शशि की रेशमी विभा-से भर

सिमटी है वर्तुल, मृदुल लहर।

चांदनी रात का प्रथम प्रहर,

हम चले नाव लेकर सत्वर!

सिकता की सस्मित-सीपी पर, मोती की ज्योत्स्ना रही विचर,

लो पालें चढीं, उठा लंगर!

मृदु मंद-मंद, मंथर-मंथर, लघु तरणि हंसिनी सी सुंदर,

तिर रही खोल पालों के पर!

निश्चल जल के शुचि दर्पण पर, बिंबित हो रजत पुलिन निर्भर,

दुहरे ऊंचे लगते क्षण भर!

कालाकांकर का राज-भवन, सोया जल में निश्चिंत, प्रमन,

पलकों में वैभव स्वप्न सघन।

नौका से उठती जल हिलोर,

हिल पडते नभ के ओर छोर।

विस्फारित नयनों से निश्चल, कुछ खोज रहे चल तारक दल,

ज्योतित कर जल का अंतस्तल,

जिनके लघु दीपों को चंचल, अंचल की ओट किए अविरल,

फिरतीं लहरें लुक-छिप पल-पल!

सामने शुक्र की छवि झलमल, पैरतीं परी-सी जल में कल,

रुपहरे कचों में हो ओझल!

लहरों के घूंघट से झुक-झुक, दशमी का शशि निज तिर्यक मुख,

दिखलाता, मुग्धा-सा रुक-रुक।

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