जयशंकर प्रसाद ने कामायनी की रचना कीकर्मवाच्य का सही रूपांतरण है
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श्रद्धा अपनी स्मित मात्र से इच्छा, ज्ञान और कर्म के बिंदुओं का एकीकरण करती है। जीवन में संघर्ष, विप्लव, एवं अतिरिक्त का मूल कारण है- इच्छा, ज्ञान एवं कर्म के बिंदुओं का अलग अलग होना। इन तीनों का समन्वय ही जीवन में सुख एवं शांति का सूचक है
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