Jeevan Mein computer ka mahatva nibandh likho
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कंप्यूटर युग – इक्कीसवीं सदी कंप्यूटर की सदी है | कंप्यूटर विज्ञान का अत्यधिक विकसित एवं बुद्धिमान यंत्र है | इसके पास ऐसा मशीनी मस्तिक है जो लाखों-करोड़ों गणनाएँ पलक झपकते ही कर देता है | जिन गणनाओं को करने के लिए मुनीम, लेखपाल और बड़े-बड़े अधिकारी दिन-रात परिश्रम करके भी गलतियाँ किया करते थे, उन्हें यह यंत्र निर्दोष रूप से तुरंत हल कर देता है |
रेल-सेवाओं में आसामी – आप रेलवे बुकिंग-केंद्र पर जाएँ | पहले मीलों लंबी लाइनों में प्रतीक्षा करनी पड़ती थी | अब कंप्यूटर की कृपा से आप देश के किसी भी कंप्यूटरीकृत खिड़की कहीं से कहीं की टिकट बुक करा सकते हैं | पूरा देश कंप्यूटर द्वारा जुड़ गया है |
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एक समय था, जब लोगों के पास गणना करने के लिए कुछ भी नहीं था। वे लकड़ी के छोटे-छोटे टुकड़ों का इस्तेमाल करते थे, दानेदाार वस्तुओं का भी उपयोग करते थे। दिन-महीने याद रखने के लिए दीवारों पर चिन्ह बना लिया करते थे।
सन 1833 में एक और मशीन तैयार की गई, जिसे चाल्र्स बैबैज ने तैयार किया था। उसका नाम ‘डिफरेंस मशीन’ रखा गया था। उस मशीन में कई पहिए लगे हुए थे। उन पहियों को घुमाने से गणितीय प्रश्नों के हल मिलते थे। उस मशीन में एक बहुत बड़ा दोष था, जिसके चलते वह अधिक सफल नहीं रही। दोष यह था कि उस मशीन से एक ही काम लिया जा सकता था।
चाल्र्स बैबेज ने एक नए प्रकार की मशीन तैयार करने का निर्णय लिया। चाल्र्स बैबेज ने अपने प्रयासों के चलते एक नए प्रकार की मशीन बना ली। उस मशीन में ‘प्रोग्राम’ बनाकर प्रश्नों को हल किया जा सकता था। उस मशीन का नाम ‘एनालिटिकल इंजन’ रखा गया।
चाल्र्स ने जो सिद्धांत उस इंजिन को बनाने के लिए अपनाया था, आज कंप्यूटर में भी उसी सिद्धांत का इस्तेमाल किया जाता है। इसलिए चाल्र्स बैबेज को कंप्यूटर का जनक कहा जाता है।
हां, चाल्र्स बैबेज ने एनालिटिकल इंजन बनाने का जो सिद्धांत दिया था, उसे पूरा करने से पूर्व ही उसकी मृत्यु हो गई थी। उसके इस अधूरे कार्य को उसकी एक प्रिय मित्र लेडी एडा ने पूरा किया था। इस तरह दुनिया का सबसे पहला प्रोग्रामर लेडी एडा को माना जाता है।
चाल्र्स बैबेज और ब्लेज पास्कल द्वारा बनाई गई मशीनें पूरी तरह से यांत्रिकीय थीं। वहीं हर्मन हॉलरिथ ने सबसे पहले विद्युत-शक्ति का प्रयोग करके एक मशीन का अविष्कार किया औश्र उस मशीन का नाम टेबुलेटर रखा।
टेबुलेटर के अविष्कार से अंकगणित के प्रश्नों के हल आसान हो गए। हर्मन ने हपने अविष्कार को बेचने के लिए एक कंपनी बनाई। उस कंपनी का नाम टेबुलेटिंग कंपनी रखा गया था। आगे चलकर टेबेलेटिंग कंपनी में अनेक कंपनियां मिल गई। ऐसे में उसका नाम बदला गया। उसका नाम आई.बी.एम. रखा गया। आज की दुनिया में सबसे ज्यादा कंप्यूटर बनाने वाली कंपनी आई.बी.एम. ही है।
सन 1943 में हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के हावार्ड आईकेन ने एक अन्य मशीन का अविष्कार किया। उसका नाम मार्क-1 रखा गया। दो वर्षों के बाद सन 1945 में संयुक्त राज्य अमेरिका में एक इलेक्ट्रॉनिक कंप्यूटर का अविष्कार किया गया। उसका नाम एनिएक था। इस तरह आधुनिक कंप्यूटर का आगमन हुआ।
कंप्यूटर के प्रयोग से हमें तरह-तरह के लाभ हैं।
कंप्यूटर बहुत ही कम समय में कोई भी कार्य पूरा कर देता है। इसकी गति मोप्स तक की होती है। कंप्यूटर द्वारा जो गणना की जाती है, वह बिलकुल सटीक होती है। कंप्यूटर बार-बार किए जाने वाले कार्य को भी बड़ी आसानी से करता है। वह व्यक्ति की तरह न तो थकता है और न ही अपनी जिम्मेदारी को नजरअंदाज करता है।
कंप्यूटर अनेक लोगों का कार्य अकेले कर सकता है। इसकी मेमोरी बहुत ज्यादा होती है। आज का युग कंप्यूटर युग है। जीवन का कोई ऐसा क्षेत्र बचा नहीं है, जिसमें कंप्यूटर का उपयोग न होता हो। शिक्षा, चिकित्सा-विज्ञान, वाणिज्य, बैंकिंग क्षेत्र तो इस पर पूरी तरह निर्भर है।