Hindi, asked by pvarma2280, 8 months ago

Jeevo per dhaya karo article

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Answered by neha2420
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लाख करो पूजा चाहे तीर्थ करो हजार, जीवों पर दया नहीं तो सबकुछ है बेकार। इसका अर्थ है दया धर्म का मूल है, जैसे मूल के बिना वृक्ष टीक नहीं सकता। वह फल-फूल नहीं सकता और उसका अस्तित्व समाप्त हो जाता है। वैसे ही दया के अभाव में धर्म नहीं हो सकता, वह बढ़ नहीं सकता। दयाहीन व्यक्ति धार्मिक तो क्या इंसान कहलाने लायक नहीं होता। वो जानवर से अधिक क्रूर हो जाता है।

यह बात अक्षयऋषिजी ने दिवाकर भवन पर धर्मसभा में कही। उन्होंने कहा भूखा जंगली जानवर एक प्राणी का शिकार कर तृप्त हो जाता है, लेकिन दयाहीन, खूंखार व्यक्ति प्रतिदिन सैकड़ों आदमी को मारकर तृप्त नहीं होता। दया के कारण हम शांति से जी रहे हैं। जिस दिन प्राणी के हदय से दया निकल जाए तो संसार नरक बन जाएगा। माता-पिता क्रूर बन जाए तो छोटे बच्चों का क्या होगा। दयाहीन व्यक्ति ज्योतिहीन दीपक की तरह है। दीपक जैसे मिट्‌टी का पात्र है, उसी तरह दयाहीन मानव सिर्फ मिट्‌टी का पुतला है। धर्मसभा को अमृतऋषिजी ने संबोधित किया। उज्जैन श्रीसंघ महामंत्री चंद्रप्रकाश गादिया ने विचार व्यक्त किए। संचालन कनकमल चौरड़िया ने किया। गुरुदेव का मंगल विहार शाम 5 बजे भूतेड़ा की ओर हुआ।

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