Science, asked by santoshshaw694, 7 months ago

Jeevon ke Sharir Mein protein ke mahatva ko likho.sanyoji utak k Karya likho.​

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Answered by adgupta1211
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प्रोटीन या प्रोभूजिन एक जटिल भूयाति युक्त कार्बनिक पदार्थ है जिसका गठन कार्बन, हाइड्रोजन, आक्सीजन एवं नाइट्रोजन तत्वों के अणुओं से मिलकर होता है। कुछ प्रोटीन में इन तत्वों के अतिरिक्त आंशिक रूप से गंधक, जस्ता, ताँबा तथा फास्फोरस भी उपस्थित होता है।[1] ये जीवद्रव्य (प्रोटोप्लाज्म) के मुख्य अवयव हैं एवं शारीरिक वृद्धि तथा विभिन्न जैविक क्रियाओं के लिए आवश्यक हैं। रासायनिक गठन के अनुसार प्रोटीन को सरल प्रोटीन, संयुक्त प्रोटीन तथा व्युत्पन्न प्रोटीन नामक तीन श्रेणियों में बांटा गया है। सरल प्रोटीन का गठन केवल अमीनो अम्ल द्वारा होता है एवं संयुक्त प्रोटीन के गठन में अमीनो अम्ल के साथ कुछ अन्य पदार्थों के अणु भी संयुक्त रहते हैं। व्युत्पन्न प्रोटीन वे प्रोटीन हैं जो सरल या संयुक्त प्रोटीन के विघटन से प्राप्त होते हैं। अमीनो अम्ल के पॉलीमराईजेशन से बनने वाले इस पदार्थ की अणु मात्रा १०,००० से अधिक होती है। प्राथमिक स्वरूप, द्वितीयक स्वरूप, तृतीयक स्वरूप और चतुष्क स्वरूप प्रोटीन के चार प्रमुख स्वरुप है

Answered by yelvekadambari7
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सारांश

मानव भोजन का मुख्य अवयव प्रोटीन है। 24 अमीनो अम्ल कई तरह के प्रोटीन का निर्माण करते हैं। वनस्पति तथा जन्तु प्रोटीन के स्रोत हैं। सभी एन्जाइम (विकर) प्रोटीन हैं तथा विकर जैव-उत्प्रेरक हैं। प्रोटीन शारीरिक सौष्ठव में तथा मानव में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने का कार्य करता है। आवश्यकता से अधिक प्रोटीन उच्च रक्तचाप, मोटापा, गठिया रोग, वृक्क रोग उत्पन्न करता है। शरीर में प्रोटीन की कमी से बौनापन, बाल का झड़ना, वजन में कमी, मासपेशियाँ कमजोर हो जाती हैं। प्रोटीन धागे वाली, गोलाकार, साधारण तथा मिश्रित होती है।

प्रोटीन कई प्रकार की होती है, जिसका वर्गीकरण अनेक प्रकार से किया जा सकता है। एक वर्गीकरण आकृति के आधार पर भी किया जाता है। इसके अनुसार प्रोटीन दो प्रकार की होती है-

1. धागे वाली प्रोटीन (फायब्रस प्रोटीन) - जब प्रोटीन की आकृति धागे के समान लम्बी तथा पतली हो। यह पानी में अघुलनशील होती है। इस प्रकार की प्रोटीन में पोलीपेप्टाइड शृंखला स्प्रिंग (कॉयल) के रूप में नहीं होती है। जैसे- केराटिन यह बालों, नाखूनों, त्वचा में उपस्थित होती है। मायोसिन यह मांसपेशियों में, कोलाजन कार्टीलेज, हड्डियों में उपस्थित होती है।

2. ग्लोब्यूलर प्रोटीन - इस प्रकार की प्रोटीन गोलाकार आकार में होती है। इस प्रकार की प्रोटीन में पोलीपेपटाइड चेन (कॉयल) गोलाकार रूप में होती है। कॉयल में आपस में अणु हाइड्रोजन बन्ध से जुड़े रहते हैं। यह प्रोटीन जल में घुलनशील होती है। जैसे-

दूसरा वर्गीकरण संरचना के आधार पर किया जाता है। इस आधार पर प्रोटीन दो प्रकार की होती है-

1. साधारण प्रोटीन - वह प्रोटीन जो जल अपघटन पर केवल एमीनो अम्ली देती है, साधारण प्रोटीन कहलाती है। जैसे- एलब्यूमिन, सीरम एलब्यूमिन, ग्लोब्यूलिन-ऊतक ग्लोब्यूलिन।

2. मिश्रित प्रोटीन (कॉन्जूगेटेड प्रोटीन) - जो प्रोटीन जल अपघटन पर एमीनो अम्ल और नॉन पेप्टाइड भाग देते हैं, वह मिश्रित प्रोटीन कहलाते हैं। नॉन पेप्टाइड भाग को प्रोस्थेटिक समूह कहते हैं। जैसे-

ग्लाइको प्रोटीन- थूक में म्यूसिन- प्रोस्थेटिक समूह- कार्बोहाइड्रेट

फॉस्फो प्रोटीन दूध में केसीन प्रोस्थेटिक समूह फॉस्फोरिक अम्ल

प्रोटीन शरीर में ऊतकों व कोशिकाओं का निर्माण करती है। प्रोटीन शरीर की वृद्धि व विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। ऊतकों व कोशिकाओं के निर्माण और मरम्मत के लिये प्रोटीन आवश्यक है। प्रोटीन शरीर में होने वाली उपापचय क्रिया को नियंत्रित करती है। यह नियंत्रण एन्जाइम और हार्मोन के द्वारा किया जाता है। प्रोटीन रक्त के द्वारा ऑक्सीजन तथा आवश्यक तत्वों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचाती है। रक्त में उपस्थित प्रोटीन के कारण रक्त ऊतकों के मध्य द्रवों का आवागमन होता है। प्रोटीन प्रतिरक्षी के रूप में शरीर को रोग प्रतिरोधक क्षमता प्रदान करता है। शरीर के विकास और नये शरीर को बनने के लिये नई कोशिकाओं और ऊतकों की आवश्यकता पड़ती है जिसकी पूर्ति प्रोटीन के द्वारा की जाती है। कोशिकाओं और ऊतकों के टूटने से रोग ग्रस्त होने, ऑपरेशन होने पर भी कोशिकाओं और ऊतकों में टूटन होती है जिसको भरने हेतु प्रोटीन की आवश्यकता पड़ती है। प्रोटीन की आवश्यकता विभिन्न अवस्थाओं, परिस्थितियों में भिन्न होती है। यह लिंग, मानसिक व शारीरिक व शारीरिक रोग, संक्रमण, तनाव, शरीर के भार पर निर्भर करती है।

प्रोटीन की सर्वाधिक आवश्यकता शिशुओं, बच्चों व किशोरों, महिलाओं को गर्भावस्था एवं स्तनपान कराते समय होती है। भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान परिषद ने पुरुषों के लिये 60 ग्राम और महिलाओं के लिये 50 ग्राम प्रोटीन प्रतिदिन सेवन की संस्तुति की है। गर्भावस्था में महिलाओं को प्रोटीन की अधिक आवश्यकता होती है क्योंकि नये ऊतक तथा केशिकाओं का निर्माण होता है। अतः गर्भवती महिलाओं को 75 ग्राम प्रोटीन के सेवन की संस्तुति की गई है। प्रोटीन दूध निर्माण के लिये आवश्यक है। बच्चों, किशोरों को प्रोटीन की अधिक आवश्यकता होती है। किसी भी रोग के होने पर, ऑपरेशन के बाद, फ्रैक्चर होने पर प्रोटीन की आवश्यकता होती है। वृद्धावस्था में भी ऊतकों को प्रोटीन की आवश्यकता होती है। गुर्दे के रोग होने पर मूत्र के साथ प्रोटीन शरीर के बाहर चली जाती है जिससे प्रोटीन की आवश्यकता शरीर में बढ़ जाती है। शरीर को प्रोटीन की आपूर्ति मिश्रित प्रोटीन से करनी चाहिए, जिससे आवश्यक एमीनो अम्ल की कमी न होने पाये। शाकाहारियों को प्रतिदिन 200-300 मिली दूध का सेवन अवश्य ही करना चाहिए। रक्त में एल्ब्यूमिन, ट्रांसफेरिन प्रोटीन के स्तर को मापकर, शरीर में कुल नाइट्रोजन की मात्रा के माप से भी प्रोटीन की कमी का पता लगाया जाता है। रक्त में एल्ब्यूमिन का स्तर 3.5 ग्राम प्रति 100 मि.ली. से कम हो तो प्रोटीन की कमी होगी। प्रोटीन की आवश्यक मात्रा उम्र, लिंग, काम करने की स्थिति पर निर्भर करती है। भिन्न परिस्थितियों में प्रोटीन की आवश्यकता भिन्न होगी।

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