jeewan mein achi aadato ka mahtav
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मनुष्य का स्वभाव है कि जिस काम को वह एक बार कर लेता है उसे फिर करना चाहता है, जिस विचार को एक बार मान में स्थान देता है उसे फिर मन में लाना चाहता है। अपने अनुभवों की आवृत्ति में उसे तृप्ति मिलती है। इस प्रकार जब कोई भाव चित्त में ठहर जाता है और बार-बार दुहराया जाता है, तो एक नई आदत बन जाती है। उदासीनता तथा आनन्द, क्रोध तथा शान्ति, लोभ उदारता-वस्तुतः समस्त मानसिक वृत्तियाँ—अपनी रुचि से ग्रहण की हुई आदतें हैं। जिस जगह से एक बार कागज मुड़ जाता है, अवसर आने पर दुबारा वही सरलता से मुड़ जाता है। पुराने अनुभव को दुहराने की यही वृत्ति हमारी सब आदतों का मूल है। और जो अनुभव विचार जितना ही दोहराया जाता है उसका संस्कार उतना ही दृढ़ होता जाता है और फिर वह जैसे हमारे स्वभाव का अंग ही बन जाता है और दृढ़ आदत का रूप धारण कर लेता है। ये ही आदतें जीवन के स्रोत हैं—जीवन की उत्पत्ति इन्हीं से है।
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