झुग्गी झोपड़ी में रहने वाले बच्चों की शैक्षिक समस्या
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गलियों में घूमने वाले व झुग्गी झोपड़ियों में रहने वाले बच्चों की शिक्षा की तरफ न तो उनके माता पिता ध्यान देते हैं और न ही कोई और। ऐसे बच्चे अक्सर शिक्षा से वंचित रह जाते हैं। लेकिन ऐसे बच्चों की शिक्षा में रुचि बने व पढ़ना लिखना सीख जाएं, इसके लिए सुमन श्रीवास्तव प्रयास कर रही हैं। जरूरतमंद बच्चों को ट्यूशन देने का काम सात माह पहले शुरू किया था। वे झुग्गियों में जाकर बच्चों के माता-पिता से मिली। अभिभावकों ने बच्चों को पढ़ाने से इंकार कर दिया। कोशिशों के बाद तीन बच्चे ट्यूशन पर आने लगे। जिसके बाद धीरे-धीरे संख्या बढ़ती गई। फिलहाल 20 बच्चों को वहां पर मुफ्त में पढ़ाई कराई जाती है। सुमन बजरंग आश्रम में प्रतिदिन बच्चों को तीन घंटे मुफ्त में पढ़ाती हैं। वहीं उन्हें पढ़ने व लिखने के लिए जरूरी सामान भी मुहैया करवाया जाता है। ताकि उन्हें पढ़ाई लिखाई में कोई समस्या न आए।
बजरंग आश्रम में सुमन श्रीवास्तव की क्लास में पढ़ते झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले
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Answer:
Concept:
शहरों में अधिकतर चौराहों के आसपास कई छोटी-छोटी बस्तियां देखने को मिलती है जो अक्सर घास-फूस व कच्ची मिट्टी की बनी होती है। इन्हें झुग्गी झोपड़ी कहा जाता है।
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झुग्गी झोपड़ी में रहने वाले बच्चों की शैक्षिक समस्या
Given:
झुग्गी झोपड़ी में रहने वाले बच्चों की शैक्षिक समस्या
Explanation:
शहरों में अधिकतर चौराहों के आसपास कई छोटी-छोटी बस्तियां देखने को मिलती है जो अक्सर घास-फूस व कच्ची मिट्टी की बनी होती है। इन्हें झुग्गी झोपड़ी कहा जाता है। झुग्गी-झोपडियों में जो लोग काम करते भी हैं उन्हें बहुत कम वेतन प्राप्त होता है इससे उन्हें उच्च गुणवत्ता का खाना प्राप्त नहीं होता, जिससे उनमें पोषण की भारी कमी हो जाती है, उनके बच्चों को अच्छी शिक्षा प्राप्त नहीं होती है।
ये बच्चे रास्ते से आती-जाती स्कूल की बसों में पोशाक पहने बाकी स्कूलों के बच्चों को देख कर बहुत खुश होते हैं और दूर से हाथ हिला कर उनका अभिनंदन भी करते हैं। बच्चों के मुख से तो कोई सवाल नहीं निकलते लेकिन मन ही मन बहुत से ख्वाब चेहरे से साफ साफ झलकते हैं। इन बच्चों की भी इच्छा होती है कि इनके लिए कोई ऐसा शिक्षण संस्थान हो जहां उन्हें शिक्षा का पाठ पढ़ाया जा सके। शहर के अलग-अलग चौराहों पर स्थित इन झुग्गी झोपड़ियों के बच्चे दूरगामी क्षेत्रों व गांव की सरकारी शिक्षण संस्थानों तक पैदल चलकर नहीं जा सकते और न कि उनके माता-पिता के पास इतना समय है कि वो इन्हे शिक्षण संस्थानों में पढ़ाई के लिए छोड़ आएं। क्योंकि वो तो केवल अपना पेट भरने में जुटे रहते हैं। शिक्षा बालक का एक मौलिक अधिकार है। झुग्गी झोपड़ी में रहने वाला बच्चा कई बार इस अधिकार से वंचित रह जाता है। शहर के कुछ क्षेत्रों में तो समाज सुधारकों द्वारा इन बच्चों की शिक्षा हेतु निशुल्क झुग्गी-झोपड़ी स्कूल चलाए जा रहे हैं जिनमें मुझ जैसे कुछ अध्यापक अपना समय निकालकर सहयोग दे रहे हैं, लेकिन प्रत्येक क्षेत्र में यह सुविधा उपलब्ध नहीं हो पाती।
#SPJ3